इंग्लैण्ड की क्रान्ति (1688 ई.) | England Revolution history in Hindi

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति|GLORIOUS REVOLUTION 1688 IN HINDI

संसार की महान क्रान्तियों में इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति 1688 ई., (England Revolution history in Hindi) संयुक्त राज्य अमेरिका राजनीतिक,की क्रान्ति (1776 ई.), फ्रांस की क्रान्ति (1789 ई.) और रूस की क्रान्ति (1917 ई.) सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं, क्योंकि इन क्रान्तियों ने संसार के मानचित्र में परिवर्तन करते सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी युगान्तरकारी परिवर्तन किए थे। इन क्रान्तियों की पृष्ठभूमि, कारणों, घटनाओं तथा परिणामों का अध्ययन आज के विश्व को समझने के लिए आवश्यक है।

इंग्लैण्ड की क्रान्ति (1688 ई.)

संसार के इतिहास (विश्व इतिहास) में पहली राजनीतिक क्रान्ति ‘इंग्लैण्ड की क्रान्ति‘ थी यह क्रान्ति ‘रक्तहीन क्रान्ति’, ‘गौरवपूर्ण क्रान्ति‘ के नाम से चर्चित है।

यह क्रान्ति रक्त की एक बूंद गिराए बिना तथा बिना युद्ध के हुई थी; इस क्रान्ति से स्टुअर्ट वंश और ब्रिटिश संसद का संघर्ष समाप्त हो गया था, संसद की सर्वोच्चता स्थापित हो गई थी।

क्रान्ति की पृष्ठभूमि

इंग्लैण्ड की यह गौरवपूर्ण क्रान्ति स्टुअर्ट वंश के राजा जेम्स द्वितीय (1685-1688 ई.) के शासन काल में हुई थी।

इस क्रान्ति की पृष्ठभूमि इंग्लैण्ड के राजाओं और संसद के बीच सर्वोच्चता के लिए होने वाले दीर्घकालीन संघर्ष में विद्यमान थी।

इंग्लैण्ड विश्व का पहला देश है, जिसमें सर्वप्रथम संसद की स्थापना हुई। नार्मन युग के हेनरी प्रथम ने शासन कार्यों में परामर्श लेने केलिए एक सलाहकार परिषद की स्थापना की थी।

यही परिषद ‘क्यूरिया रेजिस‘ कहलाई। वर्तमान ब्रिटिश संसद का यह प्रारम्भिक रूप था। 1689 ई. में बैरनों (सामन्तों) ने राजा की निरंकुश

शक्ति पर नियन्त्रण हेतु एक बिल ऑफ राइट्स तैयार किया। इस घोषणा पत्र को मानव जाति की स्वतन्त्रता का महान अधिकार पत्र अथवा मैग्नाकार्टा कहा जाता है।

इंग्लैण्ड में संसदीय संस्था के विकास का इतिहास काफी पुराना है। इसका प्रथम महत्वपूर्ण उदाहरण 1215 ई. में देखने का मिलता है जब इंग्लैण्ड की सलाहकार परिषद ने मैग्नाकार्टा घोषणा पत्र तैयार किया था, इसे राजा जॉन को 15 जून, 1215 ई. को स्वीकार करना पड़ा था।

इसके अनुसार राजा इस परिषद की आज्ञा के बिना सामन्तों की स्वतन्त्रता में न तो हस्तक्षेप कर सकता था और न ही उनके अधिकारों का अपहरण कर सकता था।

मैग्नाकार्टा को विश्व के इतिहास में मानव स्वतन्त्रता का पहला घोषणा पत्र माना जाता है। इंग्लैण्ड के सम्राट हेनरी तृतीय ने ‘क्यूरिया-रेजिस‘ का नाम पार्लियामेन्ट (संसद) रख दिया था।

ट्यूडर राजाओं के निरंकुश काल (1485-1603 ई.) की अवधि में ‘मैग्नाकार्टा’ को इंग्लैण्ड के लोग भूल से गए परन्तु स्टुअर्ट राजाओं के काल (1603-1714 ई.) में राजा और संसद के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया क्योंकि इस समय तक पुनर्जागरण और बौद्धिक जागरण के फलस्वरूप जनता की विचारधारा में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गया था और वह राजाओं की निरंकुशता को सहन नहीं कर पा रही थी।

राजा और संसद के मध्य संघर्ष

इंग्लैण्ड का पहला स्टुअर्ट वंशीय राजा जेम्स प्रथम (1603-1625 ई.) था। जेमा प्रथम ने संसद को भंग कर दिया और सात वर्ष तक संसद का कोई अधिवेशन नहीं बुलाया, तभी मैं राजा और संसद के मध्य संघर्ष का सूत्रपात हो गया;

जेम्स प्रथम का उत्तराधिकारी चार्ल्स प्रथम (1625-1649 ई.) अधिक निरंकुश शासक था, फलस्वरूप राजा और संसद के मध्य संघर्ष तीव्र हो गया। इस संघर्ष के प्रमुख कारण थे :

(i) चार्ल्स प्रथम अत्यधिक निरंकुश शासक था वह प्रशासनिक कार्यों में स्वेच्छाचारी नीति अपनाए था तथा संसद के अधिकारों की उपेक्षा कर रहा था।

(ii) चार्ल्स प्रथम ने स्वेच्छा से जनता पर करों का भारी बोझ डालकर बर्बरता से वसूली प्रारम्भ की, फलस्वरूप क्रुद्ध व असन्तुष्ट जनता संघर्ष पथ पर चल पड़ी।

(iii) चार्ल्स प्रथम ने धार्मिक असहिष्णुता की नीति अपनाकर प्यूरिटनों के प्रति पक्षपात किया।

(v) चार्ल्स प्रथम ने 1629 के बाद 11 वर्ष बाद तक संसद का कोई अधिवेशन नहीं बुलाया और ब्रिटिश संसद को शक्तिहीन बनाने के लिए अनेक प्रतिबन्ध लगाए।

उपरोक्त कारणों से चार्ल्स प्रथम और संसद के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया। राजा चार्ल्स प्रथम ने अपने शासनकाल में 1625 ई. में पहला सत्र, 1626 ई. में दूसरा सत्र, 1628 ई. में तीसरा सत्र बुलाया; इन तीनों सत्रों में संसद ने प्रजा पर करारोपण की अनुमति (करों में वृद्धि की) नहीं दी।

संसद सदस्यों ने राजा चार्ल्स प्रथम को एक अधिकार याचना पत्र (पिटीशन ऑफ राइट्स) स्वीकार करने के लिए विवश किया; इस अधिकार याचना पत्र में चार प्रमुख बातें थीं :

(i) संसद की अनुमति के बिना राजा द्वारा ऋण लेना तथा कर वसूल करना अवैध माना जाएगा।
(i) बिना कोई कारण बताए स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को बन्दी बनाना अवैध माना जाएगा।
(iii) सैनिकों को सामान्य नागरिकों के घरों में ठहराना अवैध माना जाएगा।
(iv) शान्तिकाल में देश में सैनिक कानून लागू नहीं किए जा सकते।

इस अधिकार याचना पत्र (1629 ई.) का उद्देश्य राजा की शक्ति और निरंकुशता पर नियंत्रण लगाना था नियन्त्रण लगाना था, चार्ल्स प्रथम को धन की कमी होने के कारण विवश होकर इसे स्वीकार करना पड़ा था।

परन्तु इससे उसकी शक्ति बहुत कम रह गई क्षुब्ध चार्ल्स प्रथम ने शीघ्र ही संसद को नीचा दिखाने के लिए इंग्लैण्ड में अपनी तानाशाही स्थापित कर संसद को भंग कर दिया। 1629 ई.से 1642 ई. तक इंग्लैण्ड यूरोपीय युद्धों में व्यस्त रहा ।

चार्ल्स प्रथम ने 1640 ई. में लघु संसद तथा 1642 ई. में दीर्घ संसद (लांग पार्लियामेन्ट) का सत्र बुलाया। चार्ल्स प्रथम के व्यक्तिगत शासन से क्षुब्ध संसद समर्थकों ने राजा के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष आरम्भ कर दिया।

इसे इंग्लैण्ड का गृहयुद्ध या प्यूरिटन क्रान्ति कहा जाता है। यह गृहयुद्ध 1642 ई. से 1649 ई. तक चलता रहा। इस गृहयुद्ध में अन्तिम विजय संसद समर्थकों को प्राप्त हुई। 30 जनवरी, 1649 ई. को चार्ल्स प्रथम को फांसी दे दी गई।

चार्ल्स प्रथम के बाद 1653 ई. तक रम्प संसद (चर्च के वृद्ध सदस्य) ने इंग्लैण्ड पर शासन किया। अप्रैल 1653 ई. में क्रामवेल ने रम्प को भंग कर दिया और 1658 ई. तक तलवार का शासन (निरंकुश) स्थापित किया।

क्रॉमवेल द्वारा पारित असंवैधानिक कानूनों, स्वतन्त्रता पर नियन्त्रण, भारी कर भार, आदि कारणों से सामान्य जन क्रॉमवेल के शासन से उकता गए अन्ततः पुनः राजतन्त्र की स्थापना इंग्लैण्ड में हुई और चार्ल्स द्वितीय इंग्लैण्ड का राजा बना।

चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु (1685 ई.) के पश्चात् जेम्स द्वितीय इंग्लैण्ड का राजा बना; यह अत्यधिक हठी और निरंकुश था, फलस्वरूप उसके शासनकाल के तीसरे वर्ष (1688 ई.) में इंग्लैण्ड की क्रान्ति हो गई जो रक्तहीन व शानदार (गौरवपूर्ण क्रान्ति) कहलाती है।

इंग्लैंड की क्रांति के कारण

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इंग्लैंड की क्रांति के कारण | England Revolution history in Hindi

1685 ई. में स्टुअर्ट-वंश के शासक चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु होने के बाद उसका भाई जेम्स द्वितीय इंग्लैण्ड का सम्राट बना। सम्राट बनने पर इंग्लैण्ड की जनता ने उसका स्वागत किया तथा संसद ने भी अपने सम्राट को प्रशासन में पूर्ण सहयोग देने का वचन दिया था।

लेकिन फिर भी वह मात्र 3 वर्ष तक ही शासन कर सका और 1688 ई. में उसे इंग्लैंड छोड़कर भागने को विवश होना पड़ा इस क्रांतिकारी परिवर्तन के प्रमुख कारण निम्नांकित थे।

1.कैथोलिकों को सैनिक अधिकारी बनाना-
जेम्स द्वितीय ने अपने शासन काल में कैथोलिकों को सेना में अधिकारी नियुक्त किया। इंग्लैण्ड की संसद
ने जेम्स द्वारा नियुक्तियों को अनियमित ठहराया। इस पर जेम्स ने संसद को विसर्जित कर दिया। उसकी इस प्रतिक्रिया से क्रान्ति की सम्भावना बलवती हुई।

2.कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की पुनः स्थापना-
नियुक्ति के कार्य को वैधानिक रूप प्रदान करने के लिए जेम्स ने कोर्ट ऑफ हाईकमीशन की पुनः स्थापना
की जबकि संसद इस प्रकार के न्यायालयों का निषेध कर चुकी थी।

कोर्ट ऑफ हाई कमीशन द्वारा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के चांसलर और बिशप ऑफ लन्दन को पदच्युत करके जेम्स ने उनके स्थान पर कैथोलिकों की नियुक्ति की। कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की स्थापना से चर्च के पादरी दुविधा में पड़ गए। साथ ही इंग्लैण्ड की प्रोटेस्टैण्ट जनता राजा के विरुद्ध हो गई।

3.धार्मिक अनुग्रह की द्वितीय घोषणा-
इस घोषणा के द्वारा यम ने कैथोलिकों पक्ष में क्लेरेण्डन कोर्ट टेस्ट एक्ट एवं अन्य कानूनों को स्थापित कर दिया। उन्हें पुजापाट, प्रार्थना सभाओं तथा सरकारी पदों पर नियुक्ति की खुली छूट दे दी गई। प्रोटेस्टाट जनता की दृष्टि में यह कानून के विरुद्ध था।

धार्मिक अनुग्रह की द्वितीय वौषणा द्वारा जेम्म ने पादरियों को यह आदेश दिया कि वे इस घोषणा को सभी चर्चा में पढ़कर सुनाएं, इस आदेश की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रोटेस्टैण्ट जनता बिगड़ उठी।

4.पादरियों के विरुद्ध मुकदमा-
जब सात पादरियों ने जेम्स की आज्ञा का पालन न करके चर्च में घोषणा को पढ़ने से इन्कार कर दिया तो स्थिति भीषण हो गई। राजा ने पादरियों को पकड़ कर उन पर राजद्रोह के अपराध में मुकदमा दायर कर दिया।

राजा की आज्ञा से सात पादरियों को पकड़ कर उन पर मुकदमा चलाया गया। इस घटना से लन्दन में बड़ा रोष फैल गया। किन्तु न्यायाधीशों ने पादरियों को निर्दोष घोषित कर दिया।

5.जेम्स द्वितीय के पुत्र का जन्म-
जिस समय इंग्लैण्ड की जनता सात पादरियों के निर्दोष घोषित होने की खुशी मना रही थी, उसी समय उसे जेम्स द्वितीय की दूसरी पत्नी से एक पुत्र जन्म का समाचार मिला। जेम्स द्वितीय की प्रथम पली से दो पुत्रियां थीं—मेरी तथा ऐन ।

दूसरी पत्नी के कोई सन्तान नहीं थी। मेरी का विवाह हॉलैण्ड के प्रोटेस्टेण्ट शासक विलियम ऑफ ऑरेन्ज के साथ हुआ था। मेरी भी प्रोटेस्टेण्ट धर्म की समर्थक थी।

चूंकि जेम्स के कोई पुत्र नहीं था, अतः इंग्लैण्ड की जनता को यह विश्वास हो गया कि राजा की मृत्यु के पश्चात् मेरी इंग्लैण्ड की शासिका बनेगी तथा उसके शासनकाल में प्रोटेस्टैण्ट धर्म को फलने-फूलने का सुअवसर प्राप्त होगा।

किन्तु 10 जून, 1688 ई. को जेम्स की द्वितीय पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। इस समाचार को सुनकर जनता स्तम्भित रह गई। जनता को यह भय था कि जेम्स के पुत्र को कैथोलिक स्कूल में शिक्षा प्रदान की जाएगी

तथा यदि वह राजा बन गया तो अपने पिता की भांति प्रोटेस्टैण्ट धर्म को समाप्त करने का प्रयत्न करेगा। इस भावी खतरे से भयभीत होकर इंग्लण्ड की जनता ने शीघ्र ही जेम्स द्वितीय के विरुद्ध क्रान्ति कर दी।

क्रान्ति का विस्फोट व जेम्स द्वितीय का पलायन

इस प्रकार जेम्स द्वितीय अपनी चारित्रिक व प्रशासनिक कमजोरियों के कारण देश की जनता का समर्थन प्राप्त करने में असफल रहा।

पादरियों की गिरफ्तारी व अभियोग तथा जेम्स के यहाँ पुत्र जन्म की घटनाएं, जून 1688 में घटित हुई थीं, इनके फलस्वरूप जनता ने एकमत होकर जेम्स के दामाद विलियम ऑफ आरेन्ज को इंग्लैण्ड के राज सिंहासन को सम्भालने के लिए आमन्त्रित किया।

उसने इंग्लैण्ड की जनता के आमन्त्रण को स्वीकार कर लिया तथा लगभग 15,000 सैनिकों के साथ वह इंग्लैण्ड के लिए रवाना हुआ।

नवम्बर 1688 ई. में वह इंग्लैण्ड के बन्दरगाह टोरबे पर उतरा । विलियम के आगमन तथा विद्रोह की सूचना पाकर जेम्स द्वितीय भयभीत हो गया और 23 दिसम्बर, 1688 ई. को वह अपनी पत्नी तथा नवजात पुत्र के साथ देश छोड़कर फ्रांस भाग गया।

जेम्स द्वितीय के भाग जाने के फलस्वरूप इंग्लैण्ड की राजगद्दी रिक्त हो गई, परिणामतः संसद ने एक प्रस्ताव पारित करके मेरी को शासिका तथा विलियम को संरक्षक बनाने का निर्णय लिया, किन्तु विलियम ने इस निर्णय को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।

22 जनवरी, 1689 को संसद का अधिवेशन पुनः आहूत किया गया, जिसमें अधिकारों का घोषणा पत्र तैयार किया गया। इसके आधार पर मेरी तथा विलियम को संयुक्त रूप से इंग्लैण्ड के राज सिंहासन पर आसीन कराया गया।

अधिकार घोषणा पत्र (बिल ऑफ राइट्स)

गौरवपूर्ण क्रान्ति के पश्चात् 1689 ई. में इंग्लैण्ड की संसद में बिल ऑफ राइट्स‘ या ‘अधिकार घोषणा पत्र‘ पारित किया गया, इस अधिकार पत्र की प्रमुख धाराएं निम्नांकित थीं।

1.संसद द्वारा पारित किए बिना राजा न तो किसी कानून को लागू कर सकता था, और न ही वह उसे स्थगित अथवा रद्द कर सकता था।

2.संसद की अनुमति के बिना राजा जनता पर कोई नया कर नहीं लगा सकता था।

3.राजा संसद की अनुमति के बिना कोई सेना नहीं रख सकता था।

4.किसी भी प्रकार के विशेष न्यायालयों की स्थापना राजा द्वारा नहीं की जा सकती थी।

5.संसद में सदस्यों को अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी।

6.जनता द्वारा राजा को प्रार्थना पत्र देने का अधिकार होगा, इसे राजद्रोह नहीं माना जाएंगा।

7.कोई भी ऐसा व्यक्ति जो रोमन कैथोलिक धर्म का अनुयायी होगा, वह इंग्लैण्ड का राजा नहीं बन सकेगा।

8.राजा का पद पूर्ण रूप से संसद की सहमति पर आधारित होगा।

9.राजा विलियम एवं रानी मेरी संयुक्त रूप से इंग्लैण्ड के शासक होंगे, इन दोनों के निःसन्तान होने पर मेरी की बहन ऐन और उसकी सन्तान इंग्लैण्ड की गद्दी की उत्तराधिकारी होगी।

इंग्लैंड की क्रांति के कारण के परिणाम

इतिहासकार मोवात के अनुसार, “1688 ई. की गौरवपूर्ण क्रान्ति, केवल इंग्लैंड के इतिहास की ही महत्वपूर्ण घटना नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण यूरोप के राजनीतिक इतिहास में इस घटना का महत्वपूर्ण स्थान है।” इस क्रान्ति के मुख्य परिणाम निम्नांकित थे।

1.निरंकुशता के सिद्धान्त का अन्त
जेम्स द्वितीय द्वारा राजसिंहासन छोड़ने तथा इंग्लैंड से राज परिवार सहित पलायन करने के साथ ही वहां पर निरंकुश राजसत्ता के सिद्धान्त का अन्त हो गया।

उस समय तक शासन में राजा के दैवीय अधिकार के सिद्धान्त का प्रचलन था, जिसके अन्तर्गत राजा समस्त शासन शक्ति का केन्द्र होता था।

किन्तु गौरवपूर्ण क्रान्ति के परिणामस्वरूप इस सिद्धान्त के स्थान पर सीमित तथा वैधानिक राजतन्त्र का शुभारम्भ हुआ। इस सन्दर्भ में इतिहासकार रैम्जे म्योर ने लिखा है,

“इस स्मरणीय तथा नवीन युग निर्माणी घटना के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में लोकप्रिय सरकार के युग का आरम्भ हुआ तथा सत्ता निरंकुश राजाओं के हाथ से निकलकर संसद के हाथ में आ गई।”

2.संसद की सर्वोच्चता को मान्यता-
संसद की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट तथा सुनिश्चित करने के लिए लगभग एक शताब्दी से जो संघर्ष संसद, जनता तथा शासकों के मध्य निरन्तर चल रहा था, उसका अन्त इस क्रान्ति के फलस्वरूप सन् 1688 ई. में हुआ था।

इस क्रान्ति ने निर्णय संसद के पक्ष में कर दिया था। अधिकार घोषणा पत्र’ द्वारा भी संसद की सर्वोच्चता को मान्यता दी गई तथा राजा की शक्तियों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिवन्ध लगा दिए गए।

राजा संसद की स्वीकृति के बिना जनता पर कर नहीं लगा सकता था और न ही शान्ति के समय स्थायी सेना में वृद्धि कर सकता था, इस सन्दर्भ में इतिहासकार ग्रूच ने लिखा है,

“बिल ऑफ राइट्स (अधिकार घोषणा पत्र) ने सदा के लिए यह निश्चित कर दिया कि राजतन्त्र का चाहे कुछ भी रूप हो, संसद सभी व्यावहारिक कार्यों के लिए देश की सर्वोच्च सत्ता है।”

3.धार्मिक परिणाम–

क्रान्ति का इंग्लैण्ड के धार्मिक जीवन पर भी अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा दीर्घकालीन प्रभाव पड़ा। जेम्स द्वितीय ने कैथोलिक समर्थक नीति को अपनाकर इंग्लैण्ड की प्रोटेस्टैण्ट जनता तथा ऐंग्लीकन चर्च के मार्ग में बहुत बाधा पहुंचाई थी,

किन्तु जेम्स द्वितीय के पलायन के बाद इंग्लैण्ड में रोमन कैथोलिक धर्म के विकास को गहरा धक्का लगा। अब वहां पर इस धर्म की पुनर्स्थापना की सम्भावना पूर्णतया समाप्त हो गई।

चर्च से राजा का नियन्त्रण समाप्त करके संसद की चर्च का उत्तरदायित्व सौंपा गया। सन् 1689 ई.के बिल ऑफ राइट्स’ में यह नियम बना दिया गया कि रोमन कैथोलिक धर्म का कोई अनुयायी अथवा रोमन कैथोलिक स्त्री का पति इंग्लैण्ड के राजसिंहासन पर नहीं बैट सकता था।

सन 1701 ई. के ‘एक्ट ऑफ सैटिलमैण्ट‘ (उत्तराधिकार नियम) में यह निश्चित किया गया कि भविष्य में इंग्लैण्ड के सभी राजा अनिवार्य रूप से प्रोटेस्टण्ट होंगे।

4.अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव-

गौरवपूर्ण क्रान्ति ने इंग्लैण्ड, फ्रांस व हॉलैण्ड की त्रिकोणीय राजनीति पर अपना निर्णायक प्रभाव छोड़ा था। इस क्रान्ति से पूर्व चार्ल्स द्वितीय तथा जेम्स द्वितीय के शासनकाल में इंग्लण्ड व फ्रांस के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण थे, क्योंकि दोनों देशों के शासक रोमन कैथोलिक धर्म के समर्थक थे।

इसके विपरीत, हॉलैण्ड प्रोटेस्टण्ट देश था तथा फ्रांस व हॉलैण्ड के सम्बन्ध मित्रतापूर्ण थे। फ्रांस के शासक लुई 14वें ने हॉलैण्ड पर अधिकार करने का अनेक बार प्रयास किया था, जिसके कारण दोनों देशों के मध्य स्थायी शत्रुता का जन्म हो गया था।

इंग्लैण्ड व हॉलैण्ड के मध्य भी राजनीतिक कटुता थी। किन्तु सन् 1688 ई. की इस घटना के परिणामस्वरूप यूरोप महाद्वीप के इस राजनीतिक समीकरण का अन्त हो गया ।

तथा एक नए समीकरण का सूत्रपात हुआ। इंग्लैण्ड व हॉलैण्ड का एक ही शासक हो जाने से इन देशों की कटुता का अन्त हो गया और उनमें मित्रता स्थापित हुई।

Q. गौरवपूर्ण क्रांति किस देश में हुई थी?

उत्तर- गौरवपूर्ण क्रान्ति (1688 ई.) इंग्लैण्ड में हुई थी। यह क्रान्ति रक्त की एक बूंद गिराए बिना तथा बिना युद्ध के हुई थी।

Q. इंग्लैंड का रक्तहीन क्रांति का आशय क्या है?

उत्तर- विश्व इतिहास में पहली राजनीतिक क्रान्ति ‘इंग्लैण्ड की क्रान्ति’ थी यह क्रान्ति ‘रक्तहीन क्रान्ति’, ‘गौरवपूर्ण क्रान्ति’ के नाम से चर्चित है। यह क्रान्ति रक्त की एक बूंद गिराए बिना तथा बिना युद्ध के हुई थी; इस क्रान्ति से स्टुअर्ट वंश और ब्रिटिश संसद का संघर्ष समाप्त हो गया था, संसद की सर्वोच्चता स्थापित हो गई थी।

Q.इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति कब हुई थी उस समय वहां का राजा कौन था?

उत्तर- गौरवपूर्ण क्रान्ति (1688 ई.) इंग्लैण्ड में हुई थी। इंग्लैण्ड की यह गौरवपूर्ण क्रान्ति स्टुअर्ट वंश के राजा जेम्स द्वितीय (1685-1688 ई.) के शासन काल में हुई थी।

Q.इंग्लैंड का प्रथम प्रधानमंत्री कौन था?

उत्तर- इंग्लैंड का प्रथम प्रधानमंत्री राबर्ट वाल्पोल था।

Q.रक्तहीन क्रांति क्या है?

उत्तर- यह क्रान्ति रक्त की एक बूंद गिराए बिना तथा बिना युद्ध की क्रांति थी।

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