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Russian revolution in hindi | रूस की क्रांति 1917 ई. की संक्षिप्त जानकारी
Russian revolution in hindi रूस की क्रान्ति (1917 ई.) विश्व इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस क्रान्ति ने राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए थे।
रूस की क्रान्ति (1917 ई.) ने बूर्जुआजी और पूंजीपतियों को समाप्त कर दिया; देश का शासन निम्न वर्ग के हाथों में आ गया था। रूस में पूंजीपतियों का एक वर्ग ‘बूर्जुआजी’ कहलाता था।
यह वर्ग उत्पादन के साधनों और व्यापार पर नियन्त्रण करके अर्थव्यवस्था को अपनी इच्छा अनुसार संचालित करता था साम्यवादी इस वर्ग को ‘बुर्जुआ‘ (शोषक वर्ग) कहते थे।
रूस में क्रान्ति (1917 ई.) के फलस्वरूप सर्वहारा वर्ग की तानाशाही स्थापित हो गई। ‘सर्वहारा‘ रूस के मजदूर वर्ग को कहते थे। ये अत्यन्त कठिन जीवन व्यतीत करते थे तथा इनकी दशा अत्यन्त दयनीय थी।
कारखानों में मशीनें चलाने तथा बोझा ढोने का कार्य यही वर्ग करता था। इस प्रकार रूस में कल्पनावादी समाजवाद के स्थान पर वास्तविक समाजवाद स्थापित हो गया।
काल्पनिक समाजवादी वे थे जिन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जो शोषण से पूर्णतया मुक्त हो और जिसमें सभी व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार परिश्रम करें तथा श्रम का उचित भुगतान प्राप्त करें।
काल्पनिक समाजवादियों में सेण्ट साइमन, चार्ल्स फोरियर तथा राबर्ट ओवन बहुत उल्लेखनीय थे जिन्होंने समाजवाद की स्थापना हेतु जो सुझाव दिए वे बहुत अव्यावहारिक थे अतः इन्हें काल्पनिक समाजवादी कहा गया है।
‘समाजवाद‘ वह व्यवस्था जिसमें उत्पादन के साधनों पर एक व्यक्ति का अधिकार न होकर समाज अथवा सरकार का अधिकार होता है ‘समाजवाद‘ कहलाती है अर्थात् उत्पादन का लाभ सभी के लिए होता है, धन का उचित वितरण किया जाता है।
रूस की क्रान्ति (1917 ई.) की पृष्ठभूमि | रूस की क्रांति-1917 ई. कारण, स्वरूप और परिणाम क्या रहें?(Russian Revolution 1917 AD.)
मध्यकाल में रूस नितान्त असभ्य देश स्वीकार किया जाता था। 1487 ई. में रूस में इवान प्रथम ने जारशाही स्थापित की थी। 1613 ई. में माइकेल ने ‘रोमनोव वंश’ की सत्ता रूस में स्थापित की थी।
रोमनोव वंश के शासनकाल में ही 1917 ई. की रूस की क्रान्ति हुई थी। पीटर महान के काल (1682-1725 ई.) रूस की अत्यधिक प्रगति हुई थी। कैथरीन द्वितीय (1762-1796 ई.) के काल में भी रूस का उत्कर्ष हुआ था।
रूस के जार एलेक्जेन्डर द्वितीय (1855-1881 ई.) के समय में दास प्रथा को अवैध (1861 ई. में) घोषित कर सुधारों की पृष्ठभूमि निर्मित हुई;
वह इतिहास में ‘उद्धारक जार’ के नाम से प्रसिद्ध है परन्तु एलेक्जेन्डर तृतीय (1881-1894 ई.) के समय में रूस में कठोर निरंकुश तथा दमनकारी शासन स्थापित हुआ;
इसका उत्तराधिकारी जार निकोलस द्वितीय (1894-1917 ई.) भी अपने पिता की निरंकुशता और प्रतिक्रियावादी नीति पर चलता रहा। इसी शासक के काल में 1917 ई. की क्रान्ति ने सदैव के लिए रूस में जारशाही को समाप्त कर दिया।
तत्कालीन रूस की सामाजिक दशा-
1861 ई. से पूर्व रूस में सामन्तवाद छाया हुआ था; सामन्त लोग, किसानों (भूमिदास या अर्द्धदास) जिन्हें रूस में ‘सर्फ‘ (Serf) कहा जाता था, द्वारा बेगार लेकर जबरदस्ती अपनी जमीनों पर खेती कराते थे।
इन भूमिदासों (सर्फ) को सामन्तों के अनेकानेक अत्याचारों को सहना पड़ता था, सों की दशा अत्यन्त दयनीय थी। इन्हें पेट भर भोजन नहीं मिल पाता था। पीटर महान के प्रयासों से रूस में औयोगीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई थी तथा रूसी समाज में कल-कारखानों में कार्यरत लोगों का एक नया वर्ग विकसित हो गया था।
इस प्रकार क्रान्ति से पूर्व रूसी समाज में तीन वर्ग थे; पहला वर्ग सामन्तों व कुलीनों का था जिसमें बड़े-बड़े सामन्त, जारशाही के सदस्य, उच्च पदाधिकारी, आदि थे।
दूसरा वर्ग ‘मध्यम वर्ग’ का उदय औद्योगीकरण का परिणाम था, जिसमें लेखक, विचारक, डॉक्टर, वकील तथा व्यापारी, आदि सम्मिलित थे। तीसरा वर्ग किसानों तथा मजदूरों का था।
समाज में तीसरे वर्ग की दशा दयनीय थी, इन्हें समाज में कोई स्थान प्राप्त नहीं था। प्रथम व द्वितीय वर्ग इन्हें हीन व घृणा की दृष्टि से देखते थे।
रूस की अधिकांश जनता अशिक्षित तथा अन्धविश्वासग्रस्त थी। चर्च की प्रधानता थी, पादरी वर्ग का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था पादरी समुदाय भी तृतीय वर्ग का शोषक था।
तत्कालीन रूस की आर्थिक स्थिति—
औद्योगीकरण से पूर्व रूसी लोगों का मुख्य उद्यम कृषि था; रूस में किसानों की दशा बहुत असन्तोषजनक थी; दरिद्रता उन्हें जन्मजात प्राप्त थी,
वे सदैव भुखमरी के शिकार रहते थे। उनकी उपज का अधिकांश भाग सामन्त व राजकीय कर्मचारी बलात् छीन लेते थे। पीटर महान के काल से रूस में औद्योगीकरण का सूत्रपात हुआ था परन्तु रूस के कल कारखानों में विदेशी पूंजी लगी हुई थी।
विदेशी पूंजीपतियों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ प्राप्त करना था। उन्हें रूसी जनता से कोई लगाव न था, वे रूसी मजदूरों को रंचमात्र सुविधाएं नहीं देते थे। 1905 ई. में जापान से पराजित हो जाने के कारण भी स्थिति और कठिन हो गई।
जारशाही काल में सरकार ने कभी भी मजदूरों, किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का प्रयास नहीं किया था सरकारी पदाधिकारियों के अत्याचारों ने रूसी जनता को भिखमंगा बनाकर रख दिया था।
रूस की क्रान्ति के पूर्व राजनीतिक दलों का उद्भव-
रूस की जनता की दयनीय स्थिति को उजागर करते हुए पाश्चात्य विचारों से प्रभावित रूसी लेखक व विचारक स्वर देने लगे थे।
कार्ल मार्क्स से प्रभावित होकर कुछ रूसी समाजवादी विचारधारा के प्रचार में सक्रिय हो गए थे और रूस में मजदूर संगठन पनप गए थे। 1883 ई. में ‘रूसी समाजवादी प्रजातान्त्रिक दल’ की स्थापना हुई। 1903 ई. में यह दल दो गुटों में विभक्त हो गया—पहला गुट ‘मेन्शेविक’ तथा दूसरा गुट ‘बोल्शेविक’ के नाम से चर्चित हुआ।
‘मेन्शेविक‘ रूस का शान्तिप्रिय राजनीतिक दल था, यह दल अल्पसंख्यक था यह दल चुनाव में भाग लेकर वैधानिक ढंग से शासन सत्ता प्राप्त करना चाहता था इस दल का प्रमुख नेता करेन्स्की था।
‘बोल्शेविक‘ रूस का शक्तिशाली राजनीतिक दल था। देश के अधिकांश मजदूर इसके सदस्य थे यह दल क्रान्तिकारी विचारधारा में विश्वास रखता था और हिंसात्मक क्रान्ति करके बलपूर्वक शासन सत्ता प्राप्त करना चाहता था इस दल का प्रमुख नेता लेनिन था।
• इंग्लैंड की क्रांति (1688 ई.)
1905 ई. की रूसी क्रान्ति की असफलता | Russian Revolution in hindi
रूस का जार निकोलस द्वितीय निरंकुश शासक था, वह रूसी जनता की उदारवादी भावनाओं को कुचलने का प्रयत्न करता रहता था, जनता पर बर्बर अत्याचार होते रहते थे।
सम्पूर्ण देश में गुप्तचरों का जाल बिछा था, राजद्रोह के सन्देह मात्र पर भी व्यक्ति को साइबेरिया के कैम्पों भेज दिया जाता था, गैर रूसियों को रूसी बनाने की प्रक्रिया तीव्र थी।
भाषण, लेखन तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर कठोर प्रतिबन्ध लगे हुए थे। जारशाही की इस क्रूर दमनकारी नीति के फलस्वरूप रूस की जनता में व्यापक असन्तोष विद्यमान था।
रूस का आर्थोडॉक्स चर्च (रूढ़िवादी चर्च) जिसे यूनानी चर्च भी कहते थे, जार की निरंकुशता का पोषक था, इस प्रकार चर्च का समुचित प्रभाव जनता के अपार कष्टों का महान कारण था।
रूस में सर्वत्र सामन्तशाही के अत्याचार दृष्टिगत होते थे रूसी सामन्त अपार सम्पत्ति के स्वामी थे तथा भोग-विलासमय जीवन व्यतीत करते थे। राज्य व सेना के उच्च पदों पर उनका एकाधिकार था विशेषाधिकारों का उपभोग करते थे तथा जार की निरंकुशता के समर्थक थे,
उन्होंने रुसी जनता का जमकर शोषण करना अपना कर्तव्य बना लिया था। रूस की नौकरशाही भ्रष्ट, पतित, निकम्मी थी, नौकरशाही अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु जनता का शोषण करने में तत्पर थी।
भ्रष्ट नौकरशाही से रूसी जनता बहुत क्रुद्ध व क्षुब्ध थी। इस प्रकार बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रूस की जारशाही की निरंकुशता के कारण सर्वत्र असन्तोष व्याप्त था। पाश्चात्य विचारों से प्रभावित होकर जनता अपने अधिकारों की मांग करने लगी थी।
इस में अनेक स्थानों में हड़तालें, प्रदर्शन का दौर प्रारम्भ हो गया था। इसी समय रूस-जापान युद्ध (1904-1905 ई.) में रूस की पराजय ने रूसी जनता के असन्तोष की उग्र बना दिया और वह जारशाही के विरुद्ध आन्दोलन के लिए तत्पर हो गई।
सम्पूर्ण रूस में ‘जारशाही का विनाश’, ‘युद्ध का अन्त’, ‘क्रान्ति की जय’ नारे गूंजने लगे; हड़तालों, सभाओं व आन्दोलनों की लहर आ गई; इसी क्रम में 22 जनवरी, 1905 ई. को सेण्ट पीटर्सबर्ग में एक भीषण दुर्घटना हो गई।
मजदूरों का एक विशाल जुलूस पादरी गैपों के नेतृत्व में सेण्ट पीटर्सबर्ग स्थित जार के राजमहल की और प्रस्थान कर गया, उसका उद्देश्य शान्तिपूर्वक अपनी मांगों का ज्ञापन जार निकोलस द्वितीय को देना था। परन्तु विटर पैलेस की रक्षा हेतु नियुक्त सैनिकों ने निहत्थे मजदूरों पर गोली चला दी फलस्वरूप 130 मजदूर मारे गए।
यह दुर्घटना रूस के इतिहास में एक ‘खूनी रविवार’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना ने रूसी जनता को उत्तेजित कर दिया।
स्थान-स्थान पर जनता ने विद्रोह कर दिया। इस भयंकर घटनाक्रम (विद्रोहों व संघर्षों तथा हिंसक घटनाओं) को देखकर जार निकोलस द्वितीय भयभीत हो गया उसने जनता के समक्ष घोषणा करते हुए कहा-“रूस के सभी व्यक्तियों को आर्थिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।
प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपना सकता है; धर्म के आधार पर राज्य कोई भेदभाव नहीं करेगा; गैर रूसियों को अपनी भाषा का प्रयोग करने का अधिकार होगा, किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए जेल में नहीं रखा जाएगा,
शीघ्र ही जापान से युद्ध बन्द कर दिया जाएगा और उससे सन्धि हो जाएगी।” तत्पश्चात् जार निकोलस द्वितीय ने 30 अक्टूबर, 1905 ई. को रूस में वैधानिक राजतन्त्र की स्थापना करते हुए ड्यूमा (संसद) के गठन की घोषणा कर दी।
इस प्रकार 1905 ई. की क्रान्ति ने महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिया परन्तु परिवर्तन स्थायी नहीं रहे, यह क्रान्ति विफल रही क्योंकि क्रान्तिकारियों में एकता का अभाव था, सेना तथा नौकरशाही ने जारशाही के साथ सहयोग किया था।
फिर भी जारशाही के विरुद्ध जन-असन्तोष समाप्त नहीं हुआ था जो 1917 ई. में दावानल बनकर फूट पड़ा। इस विस्फोट में जार व जारशाही का अस्तित्व समाप्त हो गया।
1917 ई. की रूस की क्रान्ति के कारण
1917 ई. की रूस की क्रान्ति एक भयंकर खूनी क्रान्ति थी जो इतिहास में ‘साम्यवादी क्रान्ति’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण थे :
(i) साम्यवादी विचारधारा का प्रचार-
रूस में औद्योगीकरण के साथ ही साम्यवादी विचारधारा विकसित होने लगी थी। साम्यवादी नेता मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे और कार्ल मार्क्स को अपना आदर्श मानते थे,
क्रान्ति के प्रणेताओं में लेनिन प्रमुख था। औद्योगिक विकास के अन्तर्गत कारखानों के निकट रहने वाले हजारों श्रमिक व मजदूर राजनीतिक मामलों में दिलचस्पी दिखाने लगे थे और उन्होंने क्लबों की स्थापना कर ली थी।
इन क्लबों में कार्ल मार्क्स के साम्यवादी विचारों के प्रचार हेतु क्रान्तिकारी नेताओं का जमाव होने लगा था। शनैः शनैः बहुत से मजदूर अपने भविष्य को सुखद बनाने हेतु साम्यवादी विचारों को हृदयंगम करने लगे तथा साम्यवादी दल में संगठित होने लगे थे।
फिशर ने ठीक ही लिखा है कि “इस साम्यवादी प्रचार ने देश के श्रमिकों में जारशाही के विरुद्ध घोर असन्तोष एवं घृणा उत्पन्न कर दी, जिसके कारण लोग जार के शासन का अन्त करने के लिए क्रान्तिकारियों का साथ देने लगे।”
(ii) 1905 की क्रान्ति का प्रभाव-
यद्यपि 1905 की रूस की क्रान्ति विफल रही थी परन्तु उसने रूस की जनता में राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न कर स्वाधीनता के लिए जारशाही के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा उत्पन्न कर दी थी।
1905 की क्रान्ति ने रूसी जनता को राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की प्रेरणा प्रदान की थी। 1905 की क्रान्ति ने विफलता के बावजूद रूसी जनता को मताधिकार व लोकतन्त्र का महत्व समझा दिया था इसीलिए रूसी जनता जारशाही को समाप्त कर वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित हो गई थी।
(iii) रूसी विचारकों-लेखकों द्वारा क्रान्ति की पृष्ठभूमि निर्मित-
रूस में 1917 ई. की क्रान्ति के पूर्व एक बौद्धिक क्रान्ति हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप रूस में पश्चिमी विचारों का प्रचार तीव्रगति से हुआ जिनसे रूस का मध्यम वर्ग अधिक जागरूक व प्रगतिशील बन गया था।
टालस्टाय, तुर्गनेव, दोस्तोवस्की के उपन्यासों ने रूस की शिक्षित जनता को बहुत प्रभावित किया। मार्क्स, मैक्सिम गोर्की, बाकुनिन के समाजवादी और अराजकतावादी विचारों ने समाज में एक वैचारिक क्रान्ति उत्पन्न कर दी।
निहलिस्ट (शून्यवादी) रूस की तत्कालीन व्यवस्था को नष्ट कर देने के लिए कृतसंकल्प हो गए इस प्रकार इन विचारकों तथा लेखकों ने रूस में क्रान्ति की पृष्ठभूमि निर्मित कर दी।
(iv) जार की निरंकुश तथा दमनकारी नीति-
रूस का जार निकोलस द्वितीय घोर निरंकुश शासक था अपनी दमनकारी नीति से रूसी जनता पर बर्बर अत्याचार करता था उसने किसी प्रकार के सुधार नहीं किए अतः जनता में व्याप्त असन्तोष क्रान्ति का मुख्य कारण बन गया।
(v) रूसी जनता की शोचनीय आर्थिक स्थिति—
प्रत्येक दृष्टि से पिछड़े रूस की जनता की आर्थिक दशा अत्यन्त दयनीय थी, रूस में किसी प्रकार की आर्थिक प्रगति नहीं हुई थी, उनकी घोर निर्धनता तथा व्याप्त असन्तोष ने उन्हें संघर्ष के लिए प्रेरित कर दिया था।
(vi) प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार-
जारशाही प्रशासन उच्च से निम्न स्तर तक भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा हुआ था। सभी कर्मचारी अयोग्य, भ्रष्ट, विलासी थे, सेना में भी कुशलता नहीं थी। इससे रूसी जनता त्रस्त व क्षुब्ध थी जिससे वह संघर्ष के लिए कटिबद्ध हो गई।
(vii) प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय–
1914 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ होने पर रूस अपनी महत्वाकांक्षा के कारण युद्धरत हो गया परन्तु रूस की सेना कुशल न थी, सेना में भ्रष्टाचार विद्यमान था
अतः रूस की पराजय होने लगी इससे रूसी जनता क्रुद्ध हो गई और अपने शासक जार निकोलस द्वितीय तथा उसकी जारशाही को इस पराजय, अपमान, असन्तोष के लिए उत्तरदायी मानने लगी तथा उसके विरुद्ध संघर्ष के लिए उठ खड़ी हुई।
रूस के इस विश्वयुद्ध में प्रवेश से और उसकी पराजय से मजदूर व किसान अत्यधिक रुष्ट थे क्योंकि अधिकांश सैनिक इसी समुदाय के थे जिन्होंने रूसी भ्रष्टाचार की शिकायतें भेजी थीं कि पूंजीपतियों, व्यापारियों ने रसद सामग्री में गोलमाल कर लाभ कमाया और उन्हें मोर्चों पर अगणित कठिनाइयों को झेलना पड़ा।
युद्ध में रूस के 6 लाख सैनिक मारे गए, 20 लाख सैनिक बन्दी बनाए गए थे तथा लाखों घायल थे। सेना की पराजय व कष्ट ने किसानों, मजदूरों को संगठित कर विद्रोह व संघर्ष के लिए प्रेरित कर दिया।
(viii) जार निकोलस द्वितीय की अदूरदर्शिता-
रूस का शासक जार निकोलस द्वितीय तथा उसकी पत्नी एलिक्स दोनों ही अदूरदर्शी थे तथा अपना समय भोग-विलास में व्यतीत करते थे उन्हें प्रशासन तथा जनता दोनों में कोई रुचि न थी इसलिए वे किसी भी प्रकार के सुधारों के लिए तैयार न थे।
परिवर्तन के वे नितान्त विरोधी थे उसका दरबार पाखण्डी व्यक्तियों से भरा हुआ था उन्हें रास्पूटिन नामक धूर्त साधु सदैव गलत परामर्श देकर जनता पर बर्बर अत्याचार कराता रहता था।
रानी एलिक्स भी जार पर अनुचित दबाव डालकर प्रशासन में हस्तक्षेप करती रहती थी तथा जनता की समस्याओं को कभी सुनने तक का अवसर नहीं देती थी।
इस प्रकार जार निकोलस द्वितीय की अदूरदर्शिता व रानी एलिक्स और धूर्त साधु रास्पूटिन के कार्यों ने क्रान्ति का पथ प्रशस्त कर दिया।
(ix) 1916-1917 ई. का रूस का भीषण अकाल—
इस समय के अकाल ने जनता में व्याप्त असन्तोष व कठिनाइयों को और भी बढ़ा दिया। भूखे मजदूर किसान रोटी के लिए क्रान्ति करने को प्रेरित हो गए।
क्रान्ति की घटनाएं : मुख्य घटनाक्रम
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय तथा पड़ रहे अकाल के फलस्वरूप गिरती मनोदशा से व्यथित जनता की आर्थिक दशा दयनीय होती गई। अनाज तथा कपड़े के अभाव में लोग,
भूखे-नंगे मृत्यु के ग्रास बनने लगे। ऐसी स्थिति में 7 मार्च, 1917 ई. को भूख व सर्दी से ठिठुरते मजदूरों की एक भीड़ ने पेट्रोग्राड नगर में जुलूस निकाला। मार्ग में (शहर में) होटलों व रोटी वालों की दुकानों में लूट-पाट की।
उच्च सैन्य अधिकारियों ने सैनिकों को गोली चलाने तथा इस भीड़ को छिन्न-भिन्न कर देने का आदेश दिया, जिसका सैनिकों ने पालन करने से इन्कार कर दिया। इस प्रकार सेना के अनुशासन भंग करने से रूस में क्रान्ति प्रारम्भ हो गई, इस क्रान्ति ने जार निकोलस द्वितीय, उसके परिवार, उच्च पदाधिकारियों और सामन्तों का काम तमाम कर दिया।
पेट्रोग्राड में जुलूस निकाले जाने के अगले दिन (8 मार्च, 1917 ई.) क्रान्ति हो गई। क्रान्तिकारी रोटी-रोटी चिल्लाते हुए सर्वत्र घूमने लगे। कपड़े के कारखानों में काम करने वाले एक लाख से अधिक मजदूर हड़ताल करके क्रान्तिकारियों में सम्मिलित हो गए।
जुलूस नारे लगाने लगे ‘युद्ध बन्द करो’, ‘निरंकुश शासन का नाश हो’, ‘जनता का राज्य हो‘। साम्यवादी और अन्य सभी शासन विरोधी तत्वों ने क्रान्तिकारियों तथा हड़तालियों से सहयोग कर क्रान्ति का पथ प्रशस्त कर दिया।
10 मार्च, 1917 ई. को पेट्रोग्राड के सभी कारखाने बन्द रहे। 11 मार्च, 1917 ई. को सेना की अनेक टुकड़ियों ने जार निकोलस द्वितीय की आज्ञा की अवहेलना करते हुए क्रान्तिकारियों से सहयोग किया। अन्ततः क्रान्तिकारियों ने पेट्रोग्राड में मजदूरों की एक सोवियत (सभा) का निर्माण किया। इसी दिन 25 हजार सैनिक सोवियत के समर्थक बन गए।
12 मार्च, 1917 ई. को मजदूरों की सोवियत ने रूस की राजधानी पेट्रोग्राड पर अधिकार कर लिया। राजधानी की सड़कों पर क्रान्तिकारियों व जार निष्ठावान सैनिकों के मध्य युद्ध होने लगा।
इसी दिन जार निकोलस द्वितीय ने ड्यूमा भंग कर दी। क्रान्तिकारियों की सफलता ने जार निकोलस द्वितीय को भयभीत कर दिया उसने 15 मार्च, 1917 ई. को अपने भाई ग्रेण्ड ड्यूक भाइकेल के पक्ष में सिंहासन त्याग दिया।
इस प्रकार 300 वर्ष से शासन करने वाले निरंकुश रोमानोव राजवंश का सदैव के लिए अन्त हो गया। इस क्रान्ति को हम फरवरी क्रान्ति के नाम से जानते हैं।
क्रान्तिकारियों ने करेन्स्की के नेतृत्व में रूस में एक सामयिक सरकार की स्थापना की परन्तु यह सरकार युद्ध की समस्या, भूमि की समस्या और औद्योगिक मजदूरों की समस्याओं को हल करने में विफल रही।
जनता में असन्तोष बढ़ता गया तथा इसी असन्तोष का लाभ उठाकर लेनिन ने करेन्स्की की सरकार को भंग कर दिया। लेनिन ने ट्राटस्की को पेट्रोग्राड सोवियत के अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर दिया।
उसके नेतृत्व में बोल्शेविकों ने शक्ति के बल पर 6 नवम्बर,1917 ई. को रात्रि में पेट्रोग्राड की सभी सरकारी इमारतों पर अधिकार कर लिया। करेन्स्की जान बचाकर विदेश भाग गया।
जार निकोलस द्वितीय तथा उसके परिवार को गोली से उड़ा दिया गया। इस प्रकार 1917 ई. में दो क्रान्तियां हुईं। इस क्रान्ति को ‘अक्टूबर की क्रान्ति‘ कहते हैं।
जार निकोलस द्वितीय निरंकुश व प्रतिक्रियावादी शासक था वह अपनी पत्नी एलिक्स तथा धूर्त साधु रास्पूटिन के हाथ की कठपुतली था। वह न तो घटनाओं को समझ पाता था और न व्यक्ति पारखी था; अस्थिर स्वभाव का हठी व्यक्ति था; अक्टूबर की क्रान्ति के बाद सपरिवार गोली से उड़ा दिया गया था।
प्राचीन रूसी कलेन्डर, वर्तमान प्रचलित कलेन्डर से (विश्व के कलेन्डर से) 8 दिन पीछे था इसलिए 7 मार्च की क्रान्ति को ‘फरवरी की क्रान्ति‘ और 6 नवम्बर की क्रान्ति को ‘अक्टूबर की क्रान्ति‘ कहा जाता है।
लेनिन (ब्लादिमिर इलियच उल्यानोव लेनिन) ने शासन सत्ता पर 6 नवम्बर, 1917 ई.को अधिकार कर रूस को 7 नवम्बर, 1917 ई. से प्रथम विश्वयुद्ध से पृथक् कर लिया और रूस में एक नवीन समाजवादी झण्डे के साथ साम्यवादी शासन की स्थापना की।
रूस के राष्ट्रीय झण्डे का रंग लाल है। लाल रंग क्रान्ति का प्रतीक है। उस पर मजदूरों का प्रतीक हथौड़ा और किसानों का प्रतीक हंसिया चिन्ह बनाया गया है। यह झण्डा समाजवादी सिद्धान्तों, समानता और एकता का प्रतीक है।
लेनिन ने शक्ति के बल पर अपने विरोधियों का अन्त कर रूस में सर्वहारा वर्ग की तानाशाही स्थापित कर दी थी। लेनिन (ब्लादीमिर इलियच उल्यानोव) ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1895 ई. में रूस के बाहर रहकर क्रान्तिकारी प्रयत्नों से रूस की जनता को जाग्रत किया था,
इस सिलसिले में उसने 14 माह का कारावास भोगा तथा तीन वर्ष साइबेरिया में निर्वासित रहा था। 1898 ई. में लेनिन ने ‘रूसी समाजवादी प्रजातान्त्रिक दल की स्थापना की तदुपरान्त लगभग 20 वर्षों तक यूरोप के विभिन्न देशों में निर्वासित जीवन व्यतीत किया।
1917 ई. में वह रूस वापस आया और करेन्स्की की सरकार को भंग कर अक्टूबर क्रान्ति को सफल बनाया। 1924 ई. तक वह रूस का निर्माता रहा उसने सक्रिय मार्क्सवादी और जन्मजात क्रान्तिकारी के रूप में विश्व
इतिहास में अमरत्व प्राप्त किया है।
रूस की क्रान्ति के परिणाम व प्रभाव
1917 ई.की रूस की क्रान्ति, विश्व इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी, इसके दूरगामी और युगान्तरकारी परिणाम हुए :
(i) रूस में जारशाही शासन की समाप्ति—
क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में निरंकुश, स्वेच्छाचारी जारशाही शासन की समाप्ति हो गई रूस का जार निकोलस द्वितीय सपरिवार मार डाला गया।
(ii) साम्यवादी शासन की स्थापना—
क्रान्ति के फलस्वरूप लेनिन के नेतृत्व में रूस में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई।
(iii) रूसी साम्राज्यवाद का अन्त–
क्रान्ति के फलस्वरूप रूसी साम्राज्य का अन्त हो गया गैर रूसी क्षेत्र रूस से स्वतन्त्र कर दिए गए।
(iv) रूस में सामन्तशाही का अन्त–
क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में सामन्तवादी व्यवस्था समाप्त हो गई तथा विशेषाधिकारों का अन्त हो गया।
(v) शोषण की समाप्ति—
क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में किसानों तथा मजदूरों पर सदियों से हो रहा शोषण समाप्त हो गया। देश की सम्पूर्ण सम्पत्ति और उद्योगों पर सरकार का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
(vi) नवीन शासन प्रणाली (साम्यवादी शासन प्रणाली) की स्थापना–
क्रान्ति के फलस्वरूप नवीन शासन प्रणाली (साम्यवादी शासन प्रणाली) अर्थात् किसानों, श्रमिकों के प्रतिनिधित्व वाली सरकार स्थापित हुई। साम्यवादी विचारधारा का विकास हुआ। इसी के चलते रूस 13 मार्च,1918 ई. में वेस्ट लिटोकेस की सन्धि के साथ प्रथम विश्वयुद्ध से अलग हो गया।
(vii). कल्याणकारी राज्य की स्थापना-
क्रान्ति के फलस्वरूप देश के संसाधनों का प्रयोग व्यक्तिगत हितों की अपेक्षा सार्वजनिक हितों के लिए किया जाने लगा। प्रत्येक काम करने वाले व्यक्ति को रोटी, कपड़ा और मकान देने का दायित्व सरकार का स्वीकार किया गया, इस प्रकार कल्याणकारी राज्य की स्थापना की गई।
(viii) दूसरे देशों में साम्यवादी विचारधारा का प्रसार—
क्रान्ति के फलस्वरूप अधिकांश देश साम्यवादी विचारधारा से आन्दोलित हुए, जिससे पश्चिमी शक्तियां (पूंजीवादी सरकारें) भयभीत होने लगीं।
(ix) कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रसार-
क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में कार्ल मार्क्स के समाजवादी सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप से क्रियान्वित किया गया तथा सर्वत्र कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रसार किया जाने लगा।
(x) रूस में नवीन युग का सूत्रपात; औद्योगिक विकास पर बल–
क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में औद्योगिक विकास को महत्व प्राप्त हो गया क्योंकि मजदूर वर्ग अपने महत्व को पहचान कर कल-कारखानों में डटकर कार्य करने लगा जिससे रूस में नवीन युग का सूत्रपात हो गया। रूस
की गणना शक्तिशाली, सम्पन्न व विकसित राष्ट्र के रूप में होने लगी। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका पंचवर्षीय योजना ने निभाई। रूस की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1928 ई. में आई।
(xi) श्रमिकों के कल्याण को प्रमुखता–
क्रान्ति के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न देशों में श्रमिकों के हितों को महत्व दिया जाने लगा। 1920 ई. में राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशन्स) के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ की स्थापना हुई, जिसने विश्व के श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
(xii) रूस का विश्व की महान शक्ति के रूप में अवतरण-
रूस की क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में जो युगान्तरकारी परिवर्तन तथा अपेक्षित सुधार हुए उनसे रूस क्रान्ति के पश्चात् विश्व की महान शक्ति बन गया। अधिकांश मजदूर इसके सदस्य थे। यह दल क्रान्तिकारी विचारधारा में विश्वास रखता था और हिंसात्मक क्रान्ति करके बलपूर्वक शासन सत्ता प्राप्त करना चाहता था। इस दल का प्रमुख नेता लेनिन था।
Q.रूस क्रांति कब हुई थी?
उत्तर- रूस की क्रान्ति (1917 ई.) विश्व इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
Q.रूस में बोल्शेविक क्रांति कब हुई?
उत्तर- 8 march 1917
Q.रूस में क्रांति के समय किसका शासन था?
उत्तर- जार निकोलस द्वितीय (1894-1917)
Q.रूस में अक्टूबर क्रांति क्यों हुई?
उत्तर- लेनिन ने ट्राटस्की को पेट्रोग्राड सोवियत के अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर दिया। उसके नेतृत्व में बोल्शेविकों ने शक्ति के बल पर 6 नवम्बर,1917 ई. को रात्रि में पेट्रोग्राड की सभी सरकारी इमारतों पर अधिकार कर लिया। करेन्स्की जान बचाकर विदेश भाग गया। जार निकोलस द्वितीय तथा उसके परिवार को गोली से उड़ा दिया गया। इस प्रकार 1917 ई. में दो क्रान्तियां हुईं। इस क्रान्ति को ‘अक्टूबर की क्रान्ति‘ कहते हैं।
Q.रूस में 1914 में किसका शासन था?
उत्तर- रूस में 1914 में जार निकोलस द्वितीय (1894-1917) तक चला था।
Q.समाजवाद क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘समाजवाद’ वह व्यवस्था जिसमें उत्पादन के साधनों पर एक व्यक्ति का अधिकार न होकर समाज अथवा सरकार का अधिकार होता है ‘समाजवाद’ कहलाती है अर्थात् उत्पादन का लाभ सभी के लिए होता है, धन का उचित वितरण किया जाता है।
Q.ड्यूमा किस देश की संसद है और यह कब बना था?
उत्तर-ड्यूमा रूस का संसद है जो जार निकोलस द्वितीय ने 30 अक्टूबर, 1905 ई. को रूस में वैधानिक राजतन्त्र की स्थापना करते हुए ड्यूमा (संसद) के गठन की घोषणा कर दी।
Q. रूस में फरवरी की क्रांति को अक्टूबर में क्यों मनाया जाता है?
उत्तर- प्राचीन रूसी कलेन्डर, वर्तमान प्रचलित कलेन्डर से (विश्व के कलेन्डर से) 8 दिन पीछे था इसलिए 7 मार्च की क्रान्ति को ‘फरवरी की क्रान्ति’ और 6 नवम्बर की क्रान्ति को ‘अक्टूबर की क्रान्ति’ कहा जाता है।
Q.खूनी रविवार क्या है?
उत्तर- मजदूरों का एक विशाल जुलूस पादरी गैपों के नेतृत्व में सेण्ट पीटर्सबर्ग स्थित जार के राजमहल की और प्रस्थान कर गया, उसका उद्देश्य शान्तिपूर्वक अपनी मांगों का ज्ञापन जार निकोलस द्वितीय को देना था। परन्तु विटर पैलेस की रक्षा हेतु नियुक्त सैनिकों ने निहत्थे मजदूरों पर गोली चला दी फलस्वरूप 130 मजदूर मारे गए।यह दुर्घटना रूस के इतिहास में एक ‘खूनी रविवार’ के नाम से प्रसिद्ध है
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