America ki kranti 1776 | American revolution in hindi | अमेरिका की क्रांति 1776 ई.

American revolution in hindi | अमेरिका की क्रांति के कारण और परिणाम

American revolution in hindi अमेरिका की कान्ति ब्रिटिश उपनिवेशवाद का एक रोचक अध्याय माना जाता है। यह केवल इंग्लैंड व अमेरिका के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की राजनीति को प्रभावित करने वाली घटना थी। इस घटना के सम्बन्ध में वैब्स्टर का कथन उल्लेखनीय है,

“अमेरिका को राज्य क्रांति ने विश्व के राष्ट्रौ, विशेषकर यूरोप के राष्ट्रों का पथ प्रदर्शन किया। इसी ने फ्रांस की राज्य क्रांति को नेता प्रदान किए।”

ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अमेरिकी उपनिवेशों की जनता ने मुक्ति संग्राम की घोषणा क्यों की? इस घटना के क्या परिणाम हुए? आदि ऐसे प्रश्न हैं, जो इतिहास के प्रत्येक विद्यार्थी के मस्तिष्क में स्वाभाविक रूप से उठते हैं। इन्हीं प्रश्नों का समाधान इस लेख की विषय वस्तु है।

अमेरिका की क्रांति 1776 के कारण

अमेरिका में स्थित ब्रिटिश उपनिवेश (बस्तियां) संख्या में कुल तेरह थे। उनमें आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से परस्पर किसी प्रकार की एकता नहीं थी।

प्रत्येक उपनिवेश में अपनी अलग व्यवस्थापिका थी। इंग्लैण्ड द्वारा अपने उपनिवेशों पर बहुत सीमित मात्रा में अधिकार रखा जाता था।

प्रत्येक उपनिवेश में ब्रिटिश सरकार द्वारा एक गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जाती थी। यद्यपि उपनिवेशों की रक्षा का दायित्व इंग्लैण्ड पर था, किन्तु सामान्यतः उपनिवेश अपनी रक्षा स्वयं करते थे। इंग्लैण्ड इन उपनिवेशों से कच्चा माल मंगाता था तथा निर्मित माल इन उपनिवेशों को भेजता था।

इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से अन्य महान शक्तियों के उपनिवेशों की अपेक्षा इंग्लैण्ड के उपनिवेशों की स्थिति संतोषजनक थी। इतना होने पर भी अमेरिकावासियों ने इंग्लैण्ड सरकार के विरुद्ध क्रान्ति क्यों की? यह एक विचारणीय प्रश्न है।

इस क्रान्ति के कारणों को निम्नांकित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता

(i) इंग्लैण्ड तथा अमेरिकावासियों में धार्मिक मतभेद—

इंग्लैण्ड को छोड़कर अमेरिका बसने वाले अंग्रेज इंग्लैण्ड में धार्मिक अत्याचारों से दुःखी होकर आए थे इनमें से अधिकांश एंग्लीकन चर्च (प्रोटेस्टैण्ट) को मानने वाले न थे जबकि इंग्लैण्ड में एंग्लीकन चर्च (प्रोटेस्टैण्ट ) को ही मान्यता प्राप्त थी।

अतः इंग्लैण्ड तथा अमेरिका में रहने वालों में धार्मिक मतभेद विद्यमान थे जो शनैः शनैः बढ़ते गए और फिर संघर्ष का पथ प्रशस्त हो गया।

(ii) अमेरिकावासियों में स्वतन्त्रता की भावना-

अमेरिका में बसने वाले लोगों में प्रारम्भ से ही स्वतन्त्रता की भावना विद्यमान थी, इसे तत्कालीन लेखकों व विचारकों (जैफर्सन, टामस पेन, मिल्टन, लॉक आदि) ने और अधिक जाग्रत कर दिया था।

लॉक के विचारों ने अमेरिका के रहने वाले लोगों को स्वतन्त्रता के संघर्ष के लिए विशेष रूप से प्रभावित किया था। इसीलिए कहा जाता है कि अमेरिका की यह क्रान्ति लॉक के विचारों से विशेष रूप से प्रभावित हुई थी।

जैफर्सन का अमेरिका की क्रान्ति में महत्वपूर्ण योगदान था, उसने अमेरिकी जनता में स्वतन्त्रता की भावना प्रसारित करके क्रान्ति को सन्निकट ला दिया।

फिलाडेल्फिया के सम्मेलन में 4 जुलाई 1776 ई. को की गई स्वतन्त्रता की घोषणा का दस्तावेज जैफर्सन ने ही लिखा था। टॉमस पेन अमेरिका का एक प्रसिद्ध विचारक था, उसके विचारों से प्रभावित होकर विश्व के अनेक देशों में स्वाधीनता संघर्ष प्रारम्भ हुए थे;

वह एक अन्तर्राष्ट्रीय क्रान्तिकारी था उसने ‘कॉमनसेन्स‘ तथा ‘द अमेरिकन क्राइसिस‘ नामक विश्वविख्यात पुस्तकों की रचना की थी।

इसके अलावा जेम्स ओटिस, पेट्रिक हेनरी ने अपनी पुस्तकों के माध्यम से स्वतन्त्रता की भावना विकसित की। इस प्रकार इन विचारकों, लेखकों, क्रान्तिकारियों ने अमेरिकावासियों में स्वतन्त्रता की भावना उद्दीप्त कर क्रान्ति का पथ प्रशस्त कर दिया था।

(iii) इंग्लैण्ड की व्यापार नीति से उभरता असन्तोष—

इंग्लैण्ड अपने अमेरिकन उपनिवेशों को लाभ का अच्छा साधन मानता था, अतः उपनिवेशों से व्यापार के सम्बन्ध में एक विशेष नीति अपनाई थी जिससे अमेरिकन बहुत क्षुब्ध थे;

अमेरिकनों का असन्तोष बढ़ता गया क्योंकि उन पर इंग्लैण्ड की सरकार ने मनमाने कर लगाने प्रारम्भ कर दिए थे, इसी असन्तोष ने क्रान्ति का पथ-प्रशस्त कर दिया।

(iv) अमेरिकनों का इंग्लैण्ड से लगाव समाप्त-

अमेरिका में यूरोप के विभिन्न देशों के लोग पर्याप्त संख्या में आकर बस गए थे; इनमें आयरिश, वेल्स, स्काटिश, डच, फ्रेंच आदि प्रमुख थे इन्हें इंग्लैण्ड से कोई लगाव नहीं था अतः जब इंग्लैण्ड की सरकार ने उन पर कर लगाए तो यह सभी असन्तुष्ट होते गए और अन्ततः क्रान्ति की ओर उन्मुख हो गए।

(v) प्रशासन सम्बन्धी मतभेद-

अमेरिकन स्वायत्त शासन के लिए प्रेरित थे परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार उन पर अपना नियन्त्रण शिथिल करने के लिए तत्पर न थी; अमेरिका के प्रत्येक ब्रिटिश उपनिवेश में गवर्नर इंग्लैण्ड की सरकार ही नियुक्त करती थी

जब कि ब्रिटिश उपनिवेशों की धारा सभाएं इन गवर्नरों पर अपना नियन्त्रण रखना चाहती थीं; ऐसी स्थिति में संषर्घ स्वाभाविक था जिसने क्रान्ति का पथ प्रशस्त कर दिया।

(vi) स्थायी सेना के रख-रखाव का व्यय अमेरिकनों से लेने का निश्चय-

अमेरिकनों की सुरक्षा हेतु इंग्लैण्ड की सरकार ने 10,000 सैनिकों की स्थायी सेना रखने का निश्चय किया जिसके रख-रखाव का व्यय अमेरिकनों से लेने का निश्चय किया गया।

इसके लिए अमेरिकनों पर कुछ अतिरिक्त कर लगाए गए। अमेरिकनों ने इन करों का प्रबल विरोध किया परिणाम स्वरूप इन करों को कठोरता से वसूलना प्रारम्भ किया गया, फलतः असन्तोष छा गया जिसने क्रान्ति का पथ-प्रशस्त कर दिया।

(vii) अमेरिकावासियों का आत्मनिर्भर होना –

लगभग 150 वर्षों से अमेरिकावासी कठोर श्रम करते आ रहे थे और वे अब आत्मनिर्भर हो गए थे। अमरीकी मालों की कीमत यूरोप के बाजारों में बढ़ने लगी थी।

आत्मनिर्भर हो जाने पर उन्हें इंग्लैण्ड की दासता खलने लगी, अतः वे इंग्लैण्ड की दासता से स्वतन्त्र होने के लिए संघर्ष करने हेतु कटिबद्ध हो गए, फलस्वरूप क्रान्ति का पथ-प्रशस्त हो गया।

(vii) सप्तवर्षीय युद्ध का प्रभाव–

फ्रांसीसी अधिकांशतः कनाडा में बसे थे जो रोमन कैथोलिक धर्म को मानते थे, अमेरिका के अन्यत्र सभी क्षेत्रों में बसे अंग्रेज प्रोटेस्टैण्ट धर्म को मानने वाले थे,

आरम्भ में अमेरिकन अंग्रेजों को यह भय था कि यदि उन्होंने इंग्लैण्ड से संघर्ष किया तो अवसर का लाभ उठाते हुए कनाडा के फ्रांसीसी उन पर आक्रमण कर सकते हैं

परन्तु जब सप्तवर्षीय युद्ध (1756-1763 ई.) के बाद कनाडा भी इंग्लैण्ड के प्रभुत्व में आ गया तब अमेरिकनों पर कनाडा के फ्रांसीसियों के आक्रमण का भय समाप्त हो गया और अमेरिकनों ने इंग्लैण्ड से संघर्ष करने का निश्चय कर लिया। अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख निम्नवत् है :

(1) स्टाम्प एक्ट (मुद्रांक अधिनियम)-

1765 ई. में पारित स्टाम्प एक्ट अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम की अत्यन्त ही महत्वपूर्ण घटना है। इस एक्ट के अनुसार यह निश्चित कर दिया गयाकि अमेरिकावासी लेन देन की लिखापढ़ी जिन कागजों पर करेंगे उस पर उन्हें अनिवार्य रूप से स्टाम्प (टिकट) लगाना होगा।

अमेरिकी उपनिवेशवासियों ने इसका घोर विरोध किया। परिणामस्वरूप अन्त में 1766 ई. में स्टाम्प एक्ट रद्द कर दिया गया। इसके अलावा शुगर एक्ट (1764 ई.) व करेंसी एक्ट ने भी अपना नकारात्मक असर दिखाया।

(2) आयात कर-
ब्रिटेन की सरकार ने 1767 ई. अमेरिकी उपनिवेशवासियों पर आयात कर लगा दिया। अमेरिकी उपनिवेशवासियों ने इस पर कड़ा विरोध किया। उन्होंने इंग्लैण्ड के माल का बहिष्कार करना आरम्भ कर दिया।

(3) बोस्टन चाय पार्टी–

बोस्टन चाय पार्टी (1773 ई.) एक ऐसी घटना थी। जिसने ब्रिटेन व उपनिवेशवासियों के बीच उत्तेजना फैला दी। ब्रिटिश सरकार की आज्ञा से भारत स्थित ईस्ट इण्डिया कम्पनी से अमेरिकी उपनिवेशों में सीधे चाय जाने लगी,

जिसका उपनिवेशवासियों ने विरोध किया और उस समय जब चाय की पेटियों से लदा जहाज बोस्टन बन्दरगाह पहुंचा तो रेड इण्डियन के वेश में उपनिवेशवासी जहाज में घुस गए और उन्होंने चाय की पेटियों को
समुद्र में फैंक दिया। विश्व इतिहास में यह घटना ‘बोस्टन चाय पार्टी’ के नाम से जानी जाती है।

(4) अमेरिकी स्वतन्त्रता की घोषणा और युद्ध का प्रारम्भ-

बोस्टन हत्याकाण्ड’, ‘बोस्टन टी पार्टी‘ तथा अन्यान्य उपर्युक्त परिस्थितियों तथा घटनाक्रमों ने इंग्लैण्ड की सरकार व अमेरिकावासियों के मध्य युद्ध स्तर को अनिवार्य बना दिया।

इंग्लैण्ड की सरकार ने अमेरिका में उत्पन्न विद्रोहों के विरुद्ध कठोर दमनचक्र चलाया, उधर अमेरिकावासियों ने इंग्लैण्ड की दासता से मुक्ति पाने हेतु और इंग्लैण्ड की शोषण नीति को समाप्त करने के लिए 1774 ई.
में फिलाडेल्फिया नगर में एक सम्मेलन आयोजित किया।

इस सम्मेलन में सभी प्रकार के प्रतिबन्ध समाप्त करने हेतु जार्ज तृतीय (इंग्लैण्ड के राजा) को ज्ञापन देने का निर्णय किया गया।

1775 ई. में लेविंग्सटन नामक स्थान पर अमेरिकनों की नागरिक सेना ने इंग्लैण्ड के सैनिकों का वीरता पूर्वक सामना किया यह अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का पहला युद्ध था अब सभी अमेरिकावासियों ने 4 जुलाई, 1776 ई. को अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी तथा इंग्लैण्ड से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया।

संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रभुत्व सम्पन्न राज्य घोषित कर दिया। इसी के साथ स्वतन्त्रता का युद्ध प्रारम्भ हो गया। 1776 ई. में जार्ज वाशिंगटन नागरिक सेना के सर्वोच्च सेनापति बनाए गए।

इनके निर्देशन में साराटोगा तथा पार्कटाउन 1781 ई. के युद्धों में नागरिक सेना ने इंग्लैण्ड की सेना को पराजित करके निर्णायक विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध में अंग्रेज सेनापति लॉर्ड कार्नवालिस था।

American revolution in hindi
American revolution in hindi

यह युद्ध 1783 ई. तक चला। अन्त में निर्णायक सफलता प्राप्त कर 1783 ई. की पेरिस की सन्धि के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म हुआ। पेरिस की सन्धि की शर्ते निम्नलिखित थीं:

1.इंग्लैण्ड ने 13 अमेरिकी उपनिवेशों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्रता प्रदान कर दी।

2.कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच मिसीसिपी नदी को दोनों देशों की सीमा के रूप में स्वीकार किया गया।

3.स्पेन को माइनारका और फ्लोरिडा वापस दे गया।

4.फ्रांस को पश्चिमी द्वीप समूह में सेण्ट ल्यूशिया एवं टुबैगो, पश्चिमी अफ्रीका, सेनेगल तथा भारत में चन्द्रनगर, पाण्डिचेरी तथा माही दे दिए गए।

5.फ्रांस को डन्कर्क में किलेबन्दी करने का अधिकार दे दिया गया।

6.इंग्लैण्ड व हालैण्ड में युद्ध पूर्व स्थिति वापस लाई गई।

7.नए अमेरिकी राष्ट्र की सीमा ओहायो नदी के साथ-साथ तय की गई।

1789 ई. में स्वतन्त्र संयुक्त राज्य अमेरिका के लिखित संविधान का निर्माण हुआ और यह 1789 ई. में ही लागू हो गया। इसके साथ ही जॉर्ज वाशिंगटन को संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया।

अमेरिकी उपनिवेशों की विजय के कारण

अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम में अमेरिकी उपनिवेशों की विजय के कारण निम्नलिखित थे :

(1).स्वतन्त्रता तथा एकता की भावना-
अमेरिकी उपनिवेशों में इंग्लैण्ड के विरुद्ध जो स्वतन्त्रता तथा एकता की भावना का संचार हुआ उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। इंग्लैण्ड की सरकार ने उपनिवेशों की स्वतन्त्रता तथा एकता की भावना के महत्व को नहीं समझा परिणाम स्वरूप उसे युद्ध में पराजय का मुंह देखना पड़ा।

(2).वाशिंगटन का कुशल नेतृत्व—
जार्ज वाशिंगटन अपने समय का महान सैनिक तथा कुशल नेतृत्वकर्ता था। वाशिंगटन की शक्तिशाली सेना ने युद्ध में इंग्लैण्ड के दांत खट्टे कर दिए।

(3).अंग्रेजों की अयोग्यता–
युद्ध संचालन की दृष्टि से अंग्रेज सर्वथा अयोग्य सिद्ध उनकी थल और जल सेना के बीच किसी प्रकार का सामंजस्य स्थापित नहीं हुआ।

(4).इंग्लैण्ड की युद्ध क्षेत्र से दूरी-
इंग्लैण्ड और अमेरिका के बीच लड़े जाने वाला युद्ध स्थल इंग्लैण्ड से लगभग 3 हजार मील की दूरी पर स्थित था। अत्यधिक दूरी होने के कारण ब्रिटिश सरकार को युद्ध स्थल पर सेना, युद्ध सामग्री आदि भेजने में बहुत समय लगा, जिसका उपनिवेशवासियों ने पूरा-पूरा लाभ उठाया।

(5).यूरोप के देशों से शत्रुता–
अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के समय इंग्लैण्ड की यूरोप के अनेक देशों यथा फ्रांस, स्पेन, एशिया और हॉलैण्ड से शत्रुता थी। शत्रुता के कारण इंग्लैण्ड को किसी भी यूरोपीय देश ने किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं दिया, ऐसी स्थिति में उपनिवेशवासियों की विजय होना निश्चित था।

अमेरिकन क्रांति के प्रभाव व उपलब्धियां | अमेरिका की क्रांति के परिणाम

अमेरिका की क्रान्ति विश्व इतिहास की एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना स्वीकार की जाती
है; इस क्रान्ति के मुख्य प्रभाव व उपलब्धियां (परिणाम) रहे-

(i) संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना –
अमेरिका की इस क्रान्ति के फलस्वरूप एक नवीन, शक्तिशाली तथा उन्नतिशील राष्ट्र ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ की स्थापना हुई।

(ii) स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने की भावना का सर्वत्र प्रसार-
अमेरिका की यह क्रान्ति स्वतन्त्रता की विजय थी अतः इस क्रान्ति का सम्पूर्ण विश्व पर प्रभाव परिलक्षित हुआ। विश्व के दूसरे देशों ने अपनी पराधीनता के विरुद्ध स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष की प्रेरणा इस क्रान्ति
से ग्रहण की।

तत्कालीन फ्रांस की जनता ने भी इस क्रान्ति से प्रेरणा लेकर अपने देश में स्वतन्त्रता-समानता हेतु क्रान्ति (1789 ई. में) की थी।

(iii) गणतन्त्र पर आधारित शासन पद्धति-
अमेरिका की क्रान्ति ने स्वतन्त्रता के पश्चात गणतन्त्र की स्थापना की, जिसका अन्य देशों पर प्रभाव पड़ा; कालान्तर में अन्य देशों ने भी गणतन्त्र पर आधारित शासन पद्धति स्थापित की।

(iv) लिखित संविधान की परम्परा प्रारम्भ-
अमेरिका की क्रान्ति के पश्चात् अमेरिका में प्रथम बार लिखित संविधान बनाया गया जिसका विश्व के अन्य देशों ने भी अनुसरण किया।

(v) लोकतन्त्र की स्थापना- –
अमेरिका में क्रान्ति के पश्चात् नागरिकों को स्वतन्त्रता और समानता के अधिकार प्राप्त हो गए क्योंकि अमेरिकी क्रान्ति का लक्ष्य स्वतन्त्रता और समानता पर आधारित राज्य की स्थापना करना था, इस प्रकार विश्व में पहली बार लोकतन्त्र की स्थापना हुई; कालान्तर में विश्व के अनेक देश लोकतन्त्र की स्थापना के लिए इस क्रान्ति से प्रेरित हुए थे

(vi) स्पेन की शक्ति का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पतन-
अमेरिकी क्रान्ति के फलस्वरूप स्थापित संयुक्त राज्य अमेरिका ‘अमेरिका महाद्वीप‘ में शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरा जिससे स्पेन की शक्ति का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पतन हो गया।

(vii) प्रथम ब्रिटिश साम्राज्य की समाप्ति-
अमेरिका स्थित ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतन्त्र हो जाने से इंगलैण्ड के प्रथम साम्राज्य एवं व्यापार प्रणाली का अन्त हो गया, यह अमेरिकी क्रान्ति का प्रत्यक्ष परिणाम था।

(viii) इंग्लैण्ड के द्वितीय साम्राज्य का सूत्रपात-
अमेरिकी क्रान्ति के दौरान अनेक लोग (लगभग 45,000) कनाडा पलायन कर गए थे, ये लोग इंग्लैण्ड के प्रति अधिकाधिक निष्ठावान थे; आस्ट्रेलियान्यूजीलैण्ड में भी अंग्रेज बसने लगे थे

और इन क्षेत्रों पर उनका आधिपत्य भी स्थापित हो गया था। इस प्रकार इंग्लैण्ड के द्वितीय साम्राज्य की स्थापना हुई जो प्रथम ब्रिटिश साम्राज्य से अधिक विस्तृत था।

(ix) जार्ज तृतीय (इंग्लैण्ड के राजा) के निजी शासन का अन्त—
अमेरिकी क्रान्ति ने इंग्लैण्ड के राजा जार्ज तृतीय के निजी शासन का अन्त कर दिया क्योंकि इस संघर्ष से उसके सम्मान को आघात लगा।

इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री छोटे पिट (Pitt the Younger) के नेतृत्व में कैबिनेट प्रणाली का विकास हुआ। इस प्रकार अमेरिका की क्रान्ति (1776 ई.) ने मानव जाति को व्यापक रूप से प्रभावित किया था।

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General-washington

अमेरिका के स्वाधीनता संघर्ष के दौरान जार्ज वाशिंगटन जो साहसी व वीर सैनिक था 1776 ई. में वह अमेरिका की नागरिक सेना का प्रधान सेनापति बना, उसने साराटोगापार्कटाउन के युद्ध में इंग्लैण्ड की सेना को पराजित कर निर्णायक विजय प्राप्त की।

वह संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला राष्ट्रपति बना; उसी के संरक्षण में विश्व का पहला लिखित संविधान निर्मित हुआ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय शासन की स्थापना की गई।

• फ्रांस की क्रांति 1789 ई.

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