Human respiratory system in hindi | मनुष्य के श्वसन तंत्र के कार्य एवं परिभाषा

स्वसन हमारे शरीर की एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रिया है स्वसन तंत्र के प्रमुख अंगों एवं उनके विभिन्न कार्य करने वाले अंगो के बारे में जानकारी दी गई है आप इस लेख में Human respiratory system in hindi में मनुष्य के श्वसन तंत्र के कार्य एवं परिभाषा जान पायेंगे।

मानव श्वसन तंत्र क्या है एवं परिभाषा

श्वसन वह प्रक्रिया है जिसमे भोजन के ऑक्सीकरण के लिए पर्यावरण से ऑक्सीजन स्वास के द्वारा शरीर के अन्दर ली जाती है और इस क्रिया फल स्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है और इस ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न कार्बन डाइ ऑक्साइड को नाक के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देना ही स्वसन कहलाता है।

प्रत्येक जीवधारी में जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा भोज्य पदार्थों के
जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। ऑक्सीकरण हेतु O,2 की आवश्यकता होती है।

प्राणी O,2 को वातावरण से श्वसन अंगों की सहायता से प्राप्त करता है। रक्त परिसंचरण तन्त्र के माध्यम से O,2 श्वसन अंगों से ऊतकों तक पहुँचती है।

कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों का जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण (श्वसन) होता है। इसके फलस्वरूप कार्बनिक पदार्थों में संचित रासायनिक ऊर्जा मुक्त होकर गतिज ऊर्जा के रूप में ATP में संचित हो जाती है। कुछ ऊर्जा ताप के रूप में वातावरण में मुक्त हो जाती है।

मनुष्य का श्वसन तंत्र human respiratory system in Hindi

फेफड़े हमारे प्रमुख श्वसनांग हैं। फेफड़े वक्षगुहा में कशेरुक दण्ड तथा पसलियों द्वारा बने एक कटहरे में
सुरक्षित रहते हैं।

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फेफड़ों तक वायु के आवागमन में नासामार्ग (nasal passage), ग्रसनी (pharynx), स्वर यन्त्र (larynx), ट्रैकिया (trachea), ब्रोन्काई (bronchi) तथा ब्रैन्किओल्स (bronchioles) सहायक होते हैं।

1. नासा मार्ग (nasal passage)

1.नासा मार्ग (Nasal passage)ऊपरी होंठ पर नासिका (nose)स्थित होती है। यह दो बाह्य नासाछिद्रों (external nostrils) द्वारा बाहर की ओर खुलती है। नासाछिद्र पीछे की ओर नासामार्ग (nasal passage) में खुलते हैं।

दोनों के मध्य एक नासा पट (nasal septum) होता है। नासिका के प्रवेश द्वारके समीप छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं,ये धूल के कणों को नासामार्ग में जाने से रोकते हैं।

नासामार्ग टरबाइनल अस्थियों (turbinal bones) के कारण घुमावदार होता है। नासामार्ग पर रोमल श्लेष्मिककला (mucous membrane) का आवरण होता है।

इससे श्लेष्म स्रावितहोता रहता है। नासामार्ग के घुमावदार रास्ते से गुजरते समय हवा का ताप शरीर के बराबर हो जाता है हवा नाम हो जाती है और जीवाणु तथा धूल कणादी श्लेष्मिक कला से चिपक जाते हैं नासा मार्ग मुख गुहा के पश्च भाग ग्रसनी में खुलता है।

2.स्वरयन्त्र अथवा कंठ (Larynx)

ग्रसनी से वायु कंठद्वार (glottis) से होती हुई श्वॉसनाल (trachea) में पहुँचती है। कंठद्वार उपास्थियों
से बनी एक बक्स सदृश्य संरचना से घिरा होता है।

इसे स्वरयन्त्र (larynx) कहते हैं। यह वायु के आवागमन पर नियन्त्रण रखने के अतिरिक्त ध्वनि उत्पादक अंग का कार्य भी करता है।

भोजन करते समय कंठद्वार (glottis) घांटीढापन (epiglottis) द्वारा बन्द हो जाता है। स्वरयन्त्र का निर्माण अनेक उपास्थियों से होता है। उपास्थियाँ परस्पर स्नायुओं से जुड़ी रहती हैै।

3.श्वासनलि (Trachea or wind pipe)

यह लगभग 12 सेमी लम्बी तथा 2.5 सेमी व्यास की नलिका होती है। यह वक्षगुहा में पहुँचकर दो शाखाओं में बंट जाती है। इनको श्वसनियाँ या ब्रॉन्काई (bronchi) कहते हैं।

अपनी-अपनी ओर के फेफड़ों में प्रवेश करके श्वसनियाँ पुनः शाखाओं तथा उपशाखाओं में बंट जाती हैं। श्वॉसनाल तथा श्वसनियों (trachea and bronchi) में उपास्थि से बने ‘C’ के आकार के अपूर्ण छल्ले होते हैं।

ये इनको पिचकने से रोकने का कार्य करते हैं। श्वॉसनाल तथा इसकी शाखाओं की भीतरी सतह पर रोमाभि (ciliated) श्लेष्मिक कला (mucous membrane) होती है। इनसे हवा के साथ आये धूल कण तथा जीवाणु आदि चिपक जाते हैं।

रोमाभ (cilia) धूलकणों आदि को ग्रसनी की ओर वापस धकेल देते हैं।फेफड़ों में पहुँचकर श्वसनियाँ (bronchi) बार-बार विभाजित एवं पुनःविभाजित होकर क्रमशः अत्यन्त महीन शाखाओं श्वसनिकाओं (bronchioles) तथा कूपिका नलिकाओं (alveolar ducts)में बँट जाती हैं।

कूपिका नलिकायें शाखायें छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं ‘कूपिकाओं'(alveoli) में खुलती हैं। मनुष्य के फेफड़ों में लगभग 15 करोड़ कूपिकायें होती हैं।ये लगभग 100 वर्ग मीटर सतह धरातल बनाती हैं।

Respiratory system in Hindi
Respiratory system in Hindi

4.फेफड़े (Lungs)

एक जोड़ी फेफड़े प्रमुख श्वसनांग (respiratory organs) होते हैं। ये हृदय के पार्श्व में स्थित गुलाबी रंग के कोमल, स्पंजी, ठोस, लचीले अंग होते हैं। फेफड़े दोहरी झिल्ली से बनी प्लूरल गुहा (pleural cavity) में स्थित होते हैं।

दोनों झिल्लियों के मध्य एक लसलसा तरल भरा रहता है जो फेफड़ों की सुरक्षा करता है। इस तरल के आवश्यकता से अधिक हो जाने पर प्लूरिसी (pleurisy) रोग हो जाता है।

प्रत्येक फेफड़ा अनेक पिण्डों (lobes) से बना होता है। बायें फेफड़े में दो तथा दायें फेफड़े में तीन पिण्ड होते हैं। प्रत्येक पिण्ड छोटे-छोटे वायुकोषों (alveoli) से बनता है।

वायुकोष की पतली भित्ति में रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है। वायुकोषों में ही ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है।

मनुष्य के फेफड़े अपेशीय होते हैं। इनका सिकुड़ना तथा फैलना वक्षगुहा के आयतन के घटने-बढ़ने पर निर्भर करता है। इस कार्य में पसलियों के मध्य स्थित पेशियाँ तथा डायाफ्राम (diaphragm) सहायक होते हैं।

5.फेफड़ों की संरचना एवं सामर्थ्य (Capacity of lungs)-

फेफड़े कभी खाली नहीं रहते हैं। सामान्य अवस्था में फेफड़ों में लगभग 2300 मिली वायु भरी रहती है। इसे फेफड़ों की ‘कार्यात्मक अवशेष सामर्थ्य’ (functional residual capacity) कहते हैं।

सामान्य अवस्था में हम लगभग 500 मिली वायु ग्रहण करते हैं। इसे ‘प्रवाही वायु’ (tidal air) कहते हैं। चेष्टा और अभ्यास करने पर हम लगभग 3500 मिली तक वायु ग्रहण कर सकते हैं।

यह हमारी ‘निःश्वसन सामर्थ्य’ (inspiratory capacity) कहलाती है। एक बार में चेष्टा करने पर 4600 मिली वायु बाहर निकाली जा सकती है, इसे ‘सजीव सामर्थ्य’ (vital capacity) कहते हैं।

ऐसा करने के बाद भी फेफड़ों में लगभग 1200 मिली वायु शेष रह जाती है, इसे ‘अवशेष वायु’ (residual air) कहते हैं। अत: फेफड़ों में 3500 + 2300 = 5800 मिली वायु भरी जा सकती है। इसे फेफड़ों की ‘कुल
सामर्थ्य’ (total lung capacity) कहते हैं।

6.श्वास क्रिया या श्वासोच्छ्वास (Breathing)

वायुमण्डल से फेफड़ों द्वारा शुद्ध वायु को ग्रहण करना तथा अशुद्ध वायु को फेफड़ों से बाहर निकालना
श्वासोच्छ्वास यानी स्ववसन (breathing) कहलाता है।

फेफड़ों में वायु ग्रहण करना निःश्वसन (inspiration) तथा फेफड़ों से वायु को निकालना उच्छ्वसन (expiration) कहलाता है।मनुष्य के फेफड़े स्पंजी ठोस होते है। ये वक्षगुहा में स्थित होते है। ये पृष्ठ तल पर कशेरुक दण्ड, अधर

तल पर स्टर्नम, पार्श्व में पसलियो, आगे की और ग्रीवा तथा पीछे से डायाफ्राम द्वारा घिरे होते हैं। फेफड़े दोहरी प्ल्यूरा झिल्ली (pleura membranes) से घिरे होते हैं। पसलियों के मध्य अन्त: एवं बाह्रा अन्तरा-पशुक पेशियाँ (internal and external intercostal muscles) स्थित होती हैं।

7.निश्वसन (Inspiration)-

डायाफ्राम की अरीय (radial) तथा बाह्य अन्तरा-पशुक पेशियों (external intercostal muscles) मे संकुचन होता है।

इसके फलस्वरूप पसलियाँ स्टर्नम (sternum) को बाहर की ओर खिसका देती हैं, डायाफ्राम चपटा हो जाता है जिससे वक्षगुहा, प्ल्यूरल गुहा तथा फेफड़ो का आयतन बढ़ जाता है।

इसके फलस्वरूप फेफड़ों में हवा का दबाव 1-3 mm Hg कम हो जाता है और वायुमण्डल की हवा नासामार्ग से होती हुई फेफड़ों में भर जाती है।

8.उच्छ्वसन (Expiration)-

डायाफ्राम की अरीय पेशियाँ (radial muscles) शिथिल हो जाती हैं। अन्तः अन्तरा-पशुक पेशियों (internal intercostal muscles) में संकुचन होने से डायाफ्राम तथा स्टर्नम अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं

जिससे वक्षगुहा एवं प्ल्यूरल गुहा का आयतन कम हो जाता है। फेफड़ों में वायु का दवाव 1-3 mm Hg बढ़ जाता है और फेफड़ों में भरी वायु श्वसन मार्ग द्वारा बाहर निकल जाती है।

सामान्य दशा में डायाफ्राम की अरीय पेशियों तथा बाह्य अन्तरा पशुक पेशियों के शिथिलन से ही फेफड़ों की वायु वायुमण्डल में चली जाती है। मनुष्य में श्वास दर 12 से 15 प्रति मिनट होती है।

वायु संचालन का नियमन (Regulation of Breathing and Ventilation)

मस्तिष्क के मेड्यूला (medulla) में स्थित श्वास केन्द्र (respiratory centre) पसलियों तथा डायाफ्राम
से सम्बन्धित पेशियों की क्रिया का नियमन करके श्वासोच्छ्वास (breathing) का नियन्त्रण करता है। श्वास नियन्त्रण तन्त्रिकीय नियन्त्रण द्वारा होता है। यही कारण है कि हम अधिक देर तक साँस नहीं रोक पाते हैं।

शरीर के अन्तः वातावरण में Co,2 की सान्द्रता के कम या अधिक हो जाने से, श्वॉस केन्द्र स्वयं उद्दीप्त होकर
श्वास दर को बढ़ाता या घटाता है।

O,2 की अधिकता कैरोटिको-सिस्टैमिक चाप में उपस्थित सूक्ष्म रासायनिक संवेदांगों को प्रभावित करती है। ये संवेदांग श्वास केन्द्र को प्रेरित करके श्वास दर को घटा या बढ़ा देते हैं।

शरीर ताप, हृदय स्पन्दन, रक्तदाब, व्यायाम, विपत्ति, रक्त में O,2 तथा CO,2 की मात्रा, रक्त का pH आदि स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (autonomic nervous system) के अन्तर्गत श्वॉस दर को घटा-बढ़ा देते हैं।

फेफड़ों में गैसीय विनिमय (Gaseous exchange in lungs)

निश्वसन में ग्रहण की गयी वायु फेफड़ों के वायुकोषों (alveoli) में भर जाती है। वायुकोषों की भित्ति में रक्त केशिकाओं (blood capillaries) का घना जाल होता है।

वायुकोष तथा रक्त केशिकाओं की भित्ति ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के लिए पारगम्य होती है। गैस विनिमय सामान्य विसरण द्वारा होता है। वायुकोषों से ऑक्सीजन रक्त केशिकाओं में तथा रक्त केशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड वायुकोषों में चली जाती है।

निश्वसन द्वारा हम प्रति मिनट लगभग 250 से मिली अक्सीजन ग्रहण करते हैं और लगभग 220 मिली कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से बाहर निकालते हैं।

फेफड़ों से ऊतक तक O,2 का स्थानान्तरण (Transportation of O,2 from lungs to tissues)

वायु में उपस्थित ऑक्सीजन सामान्य विसरण द्वारा रक्त केशिकाओं में पहुँचकर RBC के हीमोग्लोबिन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) का निर्माण करती है।

अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन कोशिकाओं (ऊतकों) में पहुँचकर ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है। मुक्त O,2 भोज्य पदार्थों (ग्लूकोज) का ऑक्सीकरण करती है। इसके फलस्वरूप CO,2) तथा H,2O तथा ऊर्जा मुक्त होती है।

उतक से फेफड़ों तक CO,2 का स्थानांतरण (Transportation of CO,2 from tissues to lungs)

कोशिकीय श्वसन के फलस्वरूप उत्पन्न CO,2 ऊतक कोशिकाओं से विसरित होकर ऊतकीय द्रव में पहुँचती है और वहाँ से रुधिर केशिकाओं में प्रवेश करती है।

लगभग 5-10 CO, 2 कार्बोनिक अम्ल (carbonic acid) के रूप में, 80-85% CO, 2 सोडियम व पोटैशियम बाइकार्बोनेट (sodium & pottasiumcarbonates) के रूप में लगभग 10% कॉबोक्सी हीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) के रूप में रक्त द्वारा फेफड़ों तक पहुँचती है। सामान्य विसरण द्वारा रक्त केशिकाओं से CO, 2 फेफड़ों में चली जाती है।

कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration)

कोशिकाओं में कार्बनिक भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण को श्वसन कहते हैं। यह क्रिया
एन्जाइम्स की सहायता से सामान्य ताप पर होती है। इसके फलस्वरूप CO, 2 तथा पानी बनता है और ऊर्जा मुक्त होती है। श्वसन जीवित कोशिकाओं में निरन्तर चलने वाली ऊष्माक्षेपी अपचय प्रक्रिया है।

कोशिकीय श्वसन के प्रकार (Types of cellular respiration)

कोशिकीय श्वसन अग्रलिखित दो प्रकार का होता है-
(क) ऑक्सी श्वसन (Aerobic respiration)- यह O, की उपस्थिति में होता है। इसमें ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। ऑक्सीश्वसन मुख्यतया दो चरणों में पूर्ण होता है-

  1. ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis)-ये क्रियायें कोशाद्रव्य में सम्पन्न होती है। इसके लिए O2 की
    आवश्यकता नहीं होती। इसमें ग्लूकोस के एक अणु से पाइरुविक अम्ल के दो अणु बनते हैं।
  2. केब्स चक्र (Krebs cycle)-यह माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में सम्पन्न होती है। पाइरुविक अम्ल का
    क्रमिक विघटन होता है। ऑक्सीसोम्स या F, कण (oxysomes or F, particles) पर इलेक्ट्रॉन परिवहन के फलस्वरूप मुक्त ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है। ऑक्सीश्वसन में 38 ATP बनते हैं।

(ख) अनॉक्सी श्वसन (Anaerobic respiration)- O,2 के अभाव में ग्लूकोज का अपूर्ण ऑक्सीकरण
होता है। इससे एथिल एल्कोहॉल (C,2H,5OH) तथा CO,2 बनती है और 21 kcal ऊर्जा मुक्त होती है
जिससे 2 ATP अणु बनते हैं।

श्वसन तंत्र के रोग एवं कुछ अव्यवस्थायें

हाइपॉक्सिया (hypoxia)– ऑक्सीजन की कमी के कारण होता है। यह रोग पहाड़ों पर चढ़ते समय O,2
की कमी के कारण हो जाता है। इस रोग में श्वास लेने में तकलीफ, सिर दर्द, त्वचा एवं श्लेष्मक झिल्ली
का नीलापन तथा वमन आदि के लक्षण देखे जाते हैं।

अल्परक्तता (anaemia)– के कारण भी हाइपॉक्सिया हो जाता है। यह रक्त की ऑक्सीजन वहन करने
की क्षमता की कमी के कारण होता है। ऊतकविष हाइपॉक्सिया (histotoxic hypoxia) उस समय होता
है जब ऊतक की ऑक्सीजन के उपयोग करने की क्षमता कम हो जाती है।

यह साइनाइड विष के कारण होती है जो ऊतक कोशिका में इलेक्ट्रॉन अभिगमन (electron transport) शृंखला का अवरोध करता है।

कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता तथा रक्ताल्पता के कारण श्वासावरोध (asphyxia) होता है जिससे श्वसन एवं रुधिर परिसंचरण के अवरोध के कारण मृत्यु हो जाती है।

न्यूमोनिया– कूपिकाओं एवं श्वसन नलिकाओं में जीवाणु के संक्रमण के कारण लसिका एवं श्लेष्मक
एकत्रित हो जाने के कारण होता है।

क्षय रोग– फेफड़ों पर प्रभाव डालने वाले जीवाणुओं के कारण होता है। क्षय रोग के उपचार हेतु बी०सी०जी० (B.C.G.) टीका लगाया जाता है।

वातावरण में 0.5 mmHg दबाव पर कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शरीर की लगभग 50% हीमोग्लोबिन श्वसन के लिए उपलब्ध नहीं होती।

0.7 mmHg दबाव पर लगभग 100% हीमोग्लोबिन श्वसन के लिए उपलब्ध नहीं रहती। यह स्थिति प्राणघातक होती है। हीमोग्लोबिन के उपलब्ध कारण कोशिकाओं में O,2 उपलब्ध नहीं होती।

श्वसन तंत्र के प्रश्न F&Q respiratory system in hindi

Q.1.श्वसन तंत्र किसे कहते हैं?

उत्तर- श्वसन वह प्रक्रिया है जिसमे भोजन के ऑक्सीकरण के लिए पर्यावरण से ऑक्सीजन स्वास के द्वारा शरीर के अन्दर ली जाती है और इस क्रिया फल स्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है और इस ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न कार्बन डाइ ऑक्साइड को नाक के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देना ही स्वसन कहलाता है।

Q.2.श्वसन तंत्र से कौन सी बीमारी होती है?

उत्तर- यह श्वसन मार्ग को संकीर्ण व अवरुद्ध करके निम्न बीमारीया उत्पन्न करते हैं फेफड़े का कैंसर, तपेदिक, अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), वातस्फीति, ब्रोंकाइटिस और ब्रोन्किइक्टेसिस आदि वायुमार्ग की बीमारियां हो सकती है।

Q.3.मानव श्वसन तंत्र क्या है?

उत्तर- फेफड़े हमारे प्रमुख श्वसनांग हैं। फेफड़े वक्षगुहा में कशेरुक दण्ड तथा पसलियों द्वारा बने एक कटहरे मेंसुरक्षित रहते हैं। फेफड़ों तक वायु के आवागमन में नासामार्ग (nasal passage), ग्रसनी (pharynx), स्वर यन्त्र (larynx), ट्रैकिया (trachea), ब्रोन्काई (bronchi) तथा ब्रैन्किओल्स (bronchioles) सहायक होते हैं।

Q.4.मानव श्वसन तंत्र कैसे कार्य करता है?

उत्तर- श्वसन तंत्र कैसे काम करता है? श्वसन तंत्र मानों एक उल्टे पेड़ की तरह होता है यहा सूक्ष्म नलिकाएं एवं वायुकोशो के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है। हृदय की माशंपेशियाँ और फेफड़ों के नीचे का पेशीय पर्दा (मध्य पट) या ड्याफ्राम ऑक्सीजन के अवागमन में सहायता करते हैं।

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