पर्यावरण तंत्र में मृदा उर्वरता एवं प्रदूषण एक गंभीर मामला है और सारा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है एवं इस पर विचार होता रहा है। की इसका उचित समाधान क्या है आज इस पोस्ट के माध्यम से Soil pollution in hindi effects,lose, prevention, प्रदूषण के कारण और उपाय निबंध, मृदा उर्वरता प्रबंधन की जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
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मृदा प्रदूषण क्या है? What is soil pollution in hindi
मृदा में विभिन्न प्रकार के लवण, खनिज तत्व, गैसें, जल, कार्बनिक पदार्थ निश्चित मात्रा में पाये जाते हैं। इनकी मात्रा में अवांछनीय परिवर्तन अथवा हानिकारक पदार्थों का संग्रह ‘मृदा प्रदूषण’ कहलाता है। मृदा प्रदूषण के कारण मृदा की गुणवत्ता एवं उपयोगिता प्रभावित होती है।
मृदा उर्वरता प्रबंधन एवं मृदा उर्वरता मूल्यांकन
पृथ्वी की ऊपरी 3.50-4.50 फीट मोटी पर्त को शीर्ष मृदा (top soil) कहते हैं। पौधों को अंकुरित होने, जमने, वृद्धि करने आदि के लिए आवश्यक पदार्थ शीर्ष मृदा से ही प्राप्त होते हैं।
शीर्ष मृदा (top soil) में खनिज लवण, ह्यूमस तथा विभिन्न सूक्ष्मजीव (micro-organism) होते हैं जो इसकी उपजाऊ शक्ति को बनाते हैं। शीर्ष मृदा पौधों का प्राकृतिक निवास स्थान है इसलिए मृदा महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।
मृदा उर्वरता की हानि (Loss of Soil fertility)
प्रकृति में अनेक कारणों से शीर्ष मृदा की उपजाऊ शक्ति क्षीण होती रहती है; जैसे-
1.खनिज लवणों की समाप्ति (depletion of minerals),
2.निक्षालन (leaching), तथा
3.मृदा अपरदन (soil erosion)।
1.खनिज लवणों की समाप्ति (Depletion of minerals)
पौधे शीर्ष मृदा से अपने लिए आवश्यक खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। निरन्तर एक ही प्रकार की फसल उगाते रहने से शीर्ष मृदा में कुछ विशेष पोषक तत्वों की कमी हो जाती है;
जैसे-पोटैशियम,अमोनियम आदि के नाइट्रेट्स, फॉस्फेट्स, सल्फेट्स आदि। इससे मृदा की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
मृदा में रासायनिक खाद (fertilizers) तथा गोबर की खाद (humus) समय-समय पर मिलाते रहने से खनिज लवणों की कमी को रोका जा सकता है। उचित फसल-चक्र अपनाने से भी मृदा की उर्वरता बनी रहती
है।
मटर कुल के पौधों को अन्य फसलों के एकान्तरण में उगाने से मृदा उर्वरता को बनाये रख सकते हैं। मटर कुल के पौधों की ग्रन्थिल जड़ों (nodulated roots) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु राइजोबियम (Rhizobium leguminosarum) पाया जाता है।
यह वायुमण्डलीय स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलता है। अनेक सूक्ष्मजीव मृत कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करके मृदा की उर्वरता को बनाये रखने में सहायक होते हैं।
2.निक्षालन (Leaching)
शीर्ष मृदा के लवणों के जल में घुलकर मृदा की निचली पर्तों में छनकर पहुँच जाने की क्रिया को निक्षालन कहते हैं। निक्षालन के फलस्वरूप शीर्ष मृदा में आवश्यक खनिजों की कमी हो जाने से मृदा की उर्वरता प्रभावित होती है।
मृदा उसर हो जाती है। गहरी जुताई, निराई-गुड़ाई करके मिट्टी को पलटते रहने से शीर्ष मृदा में लवणों की मात्रा बनी रहती है।
3.अपरदन (Erosion)
तेज वायु तथा भारी वर्षा के कारण शीर्ष मृदा का ऊपरी भाग अपने स्थान से हटकर दूर चला जाता है या किन्हीं कारणों से उपजाऊ क्षमता खो देता है। इस क्रिया को भूमि अपरदन (soil erosion) कहते हैं।
वायु अपरदन (wind erosion)–
तेज वायु अथवा आँधी, तूफान के कारण रेगिस्तानी क्षेत्रों या पादप विहीन शुष्क क्षेत्रों में होता है। धूल भरी आँधियाँ मृदाकणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं। मृदा के छोटे कण वायु में उड़ जाते हैं ,
जबकि बड़े एवं भारी कण भूमि सतह पर लुढ़ककर चलते हैं। इससे शीर्ष मृदा के कण अलग-अलग हो जाते हैं। राजस्थान में पाये जाने वाले पादप रहित रेत के टीले वायु अपरदन के कारण अपनी जगह बदलते रहते हैं।
शीर्ष मृदा की सतह वानस्पतिक आवरण से ढकी होने से वायु तथा जल अपरदन को कम किया जा सकता है। सामान्य दिशा में चलने वाली आँधियों की तीव्रता को वृक्ष लगाकर कम किया जा सकता है।
जल अपरदन (water erosion)–
में सामान्यतः पानी के तेज बहाव एवं वर्षा के कारण भूमि अपरदन होता है। तेज वर्षा के कारण मैदानी क्षेत्रों में पर्त अपरदन (sheet erosion) तथा क्षुद्र सरिता अपरदन (rill erosion) होता है।
पर्त (sheet erosion) में मृदा कण एकसमान पर्त के रूप में धीरे-धीरे बह जाते हैं। क्षुद्र सरिता अपरदन (rill erosion) में अधिक तेज वर्षा के कारण मैदानी क्षेत्रों में मृदा सतह पर छोटी-छोटी नालियाँ-सी बन जाती हैं, जिन्हें क्षुद्र सरित (rills) कहते हैं।
क्षुद्र सरिता अपरदन में मृदा की हानि पर्त अपरदन की अपेक्षा अधिक होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक ढलान होने के कारण शीर्ष मृदा के साथ-साथ अधः मृदा (sub soil) भी बह जाती है। जल गहरी नालियों से होकर बहता है, इसे अवनालिका अपरदन (gully erosion) कहते हैं।
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जब पहाड़ी क्षेत्रों में कई दिनों तक वर्षा होती रहती है तो कटान वाले स्थानों पर अधिक जल सोख लेने के कारण मृदा कटकर पृथक् हो जाती है, इसके फलस्वरूप पहाड़ों पर भूस्खलन (landslide) होता है।
इसके अतिरिक्त जल अपरदन या वायु अपरदन में उपजाऊ भूमि की सतह पर अनुपयोगी तथा अनुपजाऊ
मृदा आकर एकत्र हो जाती है। इस क्रिया को निक्षेपण (deposition) कहते हैं। इससे भूमि की उपजाऊ
शक्ति क्षीण हो जाती है।
जैसे-बाढ़ के कारण। गाद (silt) तथा वायु अपरदन के कारण रेत आदि के निक्षेपित होने से सैकड़ों हैक्टेयर भूमि विनष्ट हो जाती है।
अति चारण (over grazing) तथा वनोन्मूलन (deforestration) के कारण भी अपरदन होता है और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
अपरदन रोकना (Control on Erosion)
जल तथा वायु अपरदन रोकने के लिए सघन फसल उगानी चाहिए। जल को नालियों तथा निकासी नहरों द्वारा निकाला जाना चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में वेदिका निर्माण (terracing), कण्टूर कृषि (contour farming), पट्टीदार कृषि (strip cropping) आदि विधियाँ अपनाई जाती हैं। वनरोपण (reforestation) आदि से अपरदन को रोका जा सकता है।
भूमि संरक्षण (Soil Conservation)
शीर्ष मृदा की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना भूमि संरक्षण (soil conservation) कहलाता है।
भूमि संरक्षण के लिए निम्न विधियों का प्रयोग करते हैं-
1.भूमि की उर्वरता (Soil fertility)-भूमि की उर्वरता को बनाये रखने के लिए रासायनिक खाद,कम्पोस्ट खाद, हरी खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए।
2.शस्यावर्तन (Crop rotation)- मटर कुल के पौधों की ग्रन्थिल जड़ों (nodulated roots) में
राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम (Rhizobium leguminosarum) नामक सहजीवी जीवाणु पाया जाता है।
यह मृदा की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को बनाये
रखता है अतः मटर कुल के पौधों को अन्य फसलों के एकान्तरण में उगाना शस्यावर्तन कहलाता है। इससे
मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
3.पशुओं के चरने पर नियन्त्रण (Control on grazing) – पशुओं के अति चारण से शीर्ष मृदा के कण उखड़ जाते हैं तथा पौधे कुचलकर नष्ट हो जाते हैं। इससे मृदा का अपरदन सुगमता से हो जाता है। अतः पशुओं को चराने के लिए नियन्त्रित चरागाहों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4.वनरोपण (Reforestation)- फसल उगाकर, वृक्षारोपण आदि के फलस्वरूप जड़ें भूमि को बाँधे रखती हैं। इसके फलस्वरूप जल एवं वायु अपरदन के कारण मृदा हानि नहीं होती है। वृक्षों की पंक्तियाँ जो हवा की गति को कम करती हैं, वातरोधक (wind breakers) कहलाती हैं। ये वायु अपरदन को रोकती हैं।
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5.कण्टूर कृषि (Contour farming)- पहाड़ी ढलानों पर शिखर से नीचे की ओर समकोण बनाते हुए गोलाई में जुताई-गुड़ाई की जाती है। इस प्रकार नालियों में एकत्र पानी को मृदा अवशोषित कर लेती है और
नालियों के किनारे की मिट्टी बन्ध का कार्य करती है। इस प्रकार की खेती को कण्टूर कृषि कहते हैं।
6.वेदिका निर्माण (Terracing)- पर्वतीय ढलान को छोटे-छोटे समतल सीढ़ीनुमा खेतों में बाँट लेते हैं। इन सीढ़ियों या वेदिकाओं (terraces) के आधार पर नालियाँ होती हैं। ये अधिक जल को नीचे जाने से रोकती हैं। इस कारण मृदा अपरदन नहीं होता है।
7.पट्टीदार कृषि (Strip cropping)- कम ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्रों में पट्टीदार खेती की जाती है। यहाँ दो प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं-(i) मुख्य ढकने वाली फसल (cover crop), तथा (ii) पंक्ति फसल (row crop)। पंक्ति फसल की जड़ें मिट्टी को बाँधे रखती हैं, जबकि मुख्य फसल जल बहाव को रोकती है। पंक्तियाँ या पट्टियाँ ढाल के समकोण पर बनाई जाती हैं।
8.बाँध निर्माण (Dam building)- तेज बहाव वाले अधिक जल को रोकने के लिए बाँध बनाये जाते हैं। बाँध में रुके जल को आवश्यकतानुसार पूरे वर्ष प्रयोग किया जा सकता है; जैसे-भाखड़ा-नांगल, कोसी, दामोदर, हीराकुण्ड, चम्बल आदि स्थानों पर बड़े-बड़े बाँध बनाये गये हैं।
मृदा प्रदूषण के स्रोत (Sources of soil pollution in hindi)
1.जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्य पदार्थों की आपूर्ति हेतु उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वरकों (fertilizers) का उपयोग बढ़ रहा है। फसलों को कीटों, कवकों, जीवाणुओं आदि से बचाने के लिए कीटनाशकों,
कवकनाशकों, खरपतवारनाशकों, जैसे डी०डी०टी०, फिनायल, गेमेक्सीन, एल्ड्रीन, 2-4-D, 2-4-5-T आदि का उपयोग करने से मृदा प्रदूषित हो जाती है।
इन रसायनों का उपयोग गैस, तरल या ठोस रूपों में किया जाता है। ये रसायन मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवों को क्षति पहुँचाते हैं जिससे कार्बनिक पदार्थों के विघटन की प्रक्रिया प्रभावित होती है और मृदा की उर्वरता का ह्रास होता है।
2.घरेलू अपमार्जकों से युक्त जल से सिंचाई करने से मृदा प्रदूषित हो जाती है।
3.पेड़-पौधों को काटने से तथा कृषियोग्य भूमि में फसल न उगाने से मृदा अपरदन होता है, यह भी
मृदा प्रदूषण ही है।
4.औद्योगिक अपशिष्ट के कारण मृदा प्रदूषित हो जाती है। उद्योगों से निकलने वाले विषैले रसायन मृदा की उर्वरता को कम करते हैं।
मृदा प्रदूषण का प्रभाव (Effect of soil pollution in hindi)
1.मृदा प्रदूषण के कारण भूमि की उर्वरता का ह्रास होने से उत्पादन प्रभावित होता है।
2.प्रदूषित मृदा से हानिकारक पदार्थ खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्यों में पहुँचकर हानि पहुँचाते हैं।
3.उर्वरता के प्रभावित होने से मृदा अपरदन होता है, इससे सूखे तथा बाढ़ की सम्भावना बनी रहती है।
मृदा प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (Preventive methods for soil pollution in Hindi)
1.घरेलू अपशिष्ट (कचरा), नगरपालिका अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट एवं कृषि अपशिष्ट को एक स्थान पर एकत्र करके उन्हें नष्ट कर देना चाहिए।
2.पुनः चक्रीकरण (recycling) द्वारा विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को उपयोगी पदार्थों में बदल देना चाहिए।
3.उर्वरकों (fertilizers) का उपयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए।
4.कीटाणुनाशक, कवकनाशक, पीड़कनाशक एवं खरपतवारनाशकों का प्रयोग सीमित मात्रा में करना चाहिए।
5.औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाले जल का शोधन करने के पश्चात ही उसे नदियों में छोड़ा जाना चाहिए।
Soil pollution in hindi video
मृदा प्रदूषण पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न F&Q Soil pollution in hindi
Q.1.मिट्टी प्रदूषण क्या है?
उत्तर- मृदा में विभिन्न प्रकार के लवण, खनिज तत्व, गैसें, जल, कार्बनिक पदार्थ निश्चित मात्रा में पाये जाते हैं। इनकी मात्रा में अवांछनीय परिवर्तन अथवा हानिकारक पदार्थों का संग्रह ‘मृदा प्रदूषण’ कहलाता है।
Q.2.मृदा प्रदूषण कैसे होती है?
उत्तर- मृदा प्रदूषण होने कारण जब मनुष्य सीधे या परोक्ष रूप से मृदा मे हानिकारक पदार्थो, रसायनों या वस्तुओं का प्रयोग करता है जिसके फलस्वरूप अन्य जीवित चीजों के नुकसान का गम्भीर कारण बनता है या मिट्टी या पानी के पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करने काम करता है
Q.3.मृदा प्रदूषण के कारण कौन कौन से हैं?
उत्तर- फसलों को कीटों, कवकों, जीवाणुओं आदि से बचाने के लिए कीटनाशकों,कवकनाशकों, जैसे डी०डी०टी०, फिनायल, गेमेक्सीन,ये रसायन मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवों को क्षति पहुँचाते हैं
Q.4.मृदा प्रदूषण से क्या कम होती है?
उत्तर- मृदा प्रदूषण उर्वरा शक्ति में कमी एवं उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जिससे मिट्टी बंजर बन जाती हैं ।
Q.5.मृदा प्रदूषण के निवारण क्या है?
उत्तर- मृदा प्रदूषण कम करने के लिए हमें कृषि कार्य में रसायनों का प्रयोग कम करना, पेड़ लगाना, कूड़ा करकट सीधी मिट्टी में ना डालना, आदि है।
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