यकृत (liver) हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है इसके कार्य करने की एक जटिल प्रक्रिया होती है जो हम आज के पोस्ट में जानेंगे liver in Hindi में।
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where is the liver located in hindi लिवर कहाँ होता है
यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि एवं अंग है। इसका वजन लगभग 1.5–2 kg होता है। यह उदरगुहा में डायाफ्राम के नीचे तथा आमाशय के ऊपर स्थित होता है। मानव के यकृत में तीन पालियाँ (Lobes) होती हैं। यकृत के पिण्ड अनेक बहुभुजीय पिण्डकों से बने होते हैं, जिन्हें ग्लिसन सम्पुट (Glisson’s capsule) कहते हैं।
इन पिण्डकों से यकृत कोशिकाओं (Hepatic cells) का निर्माण होता है, जिससे पित्तरस (Bile juice) स्रावित होता है। यह पित्तरस यकृत के निकट स्थित थैलीनुमा संरचना पित्ताशय (Gall bladder) में एकत्र होता है।
इसमें पाचक एन्जाइम नहीं होते हैं, किन्तु यह वसा के पाचन में सहायक होता है। यकृत मानव शरीर की अतिमहत्त्वपूर्ण ग्रन्थि है। यह मानव शरीर में पाचन के अतिरिक्त बहुत सारे अतिमहत्त्वपूर्ण कार्य करता है, जो निम्न हैं।
यकृत का कार्य function of liver in hindi :-
यकृत के कुछ महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं जो हमारे शरीर में अहम भूमिका निभाते हैं।
(a) पित्तरस का स्रावण (Secretion of Bile Juice) :-
आमाशयिक रस के अम्ल को प्रभावहीन करने के लिए पित्तरस बनाता है, जो भोजन को क्षारीय माध्यम देता है साथ ही वसा का इमल्सीकरण करता है। यह भोजन को सड़ने से भी बचाता है तथा हानिकारक जीवाणुओं से रक्षा करता है।
(b) हिपैरिन (Heparin) :-Liver in Hindi
यकृत कोशिकाएँ हिपैरिन नामक प्रतिस्कन्धक पदार्थ का स्रावण करती हैं, जो शरीर के अन्दर रक्त को जमने से रोकता है। मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता है।
(c) ग्लाइकोजन का संचय (Accumulation of Glycogen) :-
जब पाचन के पश्चात् रुधिर में आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस (Glucose) पहुँचता है, तो वह यकृत कोशिकाओं द्वारा ग्लाइकोजन (Glycogen) में बदल दिया जाता है और यकृत में संचित कर दिया जाता है।
कार्बोहाइड्रेट उपापचय के अन्तर्गत यकृत रक्त के ग्लूकोज (Glucose) वाले भाग को ग्लाइकोजेन (Glycogen)में परिवर्तित कर देता है और संचित पोषक तत्वों के रूप में यकृत कोशिका (Hepatic Cell) में संचित कर लेता है ।
ग्लूकोज की आवश्यकता होने पर यकृत संचित ग्लाइकोजेन को खंडित कर ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार यह रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियमित बनाये रखता है।
(d) वसा संश्लेषण (Fat Synthesis) :-
यकृत, कोशिकाओं में उपस्थित ग्लूकोस की अतिरिक्त मात्रा को वसा में बदलकर वसीय ऊतकों में संचित कर देता है।
यकृत द्वारा ही पित्त सावित होता है। यह पित्त आँत में उपस्थित एन्जाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है।
यकृत प्रोटीन के उपापचय में सक्रिय रूप से भाग लेता है और प्रोटीन विघटन के फलस्वरूप उत्पन्न विषैले अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित कर देता है। यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता है।
भोजन में वसा की कमी होने पर यकृत कार्बोहाइड्रेट के कुछ भाग को वसा में परिवर्तित कर देता है।
(e) रुधिर का थक्का बनना (Clotting of Blood) :-
यकृत कोशिका प्रोथ्रॉम्बिन तथा फाइब्रिनोजन रुधिर प्रोटीन का संश्लेषण करती है, जो की लगने पर रुधिर का थक्का बनाने का कार्य करती है। फाइब्रिनोजेन (Fibrinogen) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता है, जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता है।
यकृत थोड़ी मात्रा में लोहा (Iron), ताँबा (Copper)और विटामिन को संचित करके रखता है।
शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता है। भोजन में जहर (Poison) देकर मारे गये व्यक्ति की
मृत्यु के पकारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता है।
(f) यूरिया का संश्लेषण (Synthesis of Urea) :-
यकृत में यूरिया के संश्लेषण एवं विषैले पदार्थों को कम करने का कार्य होता है।
पित्ताशय (Gall-bladder) :- Liver in Hindi
पित्ताशय नाशपाती के आकार की एक थैली होती है, जिसमें यकृत से निकलने वाला पित्त जमा रहता है।
पित्ताशय से पित्त पक्वाशय में पित्त-नलिका के माध्यम से आता है।
पित्त का पक्वाशय में गिरना प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) द्वारा होता है। पित्त (Bile) पीले-हरे रंग का क्षारीय द्रव है, जिसका pH मान 7.7 होता है। पित्त में जल की मात्रा 85% एवं पित्त वर्णक (Bile pigment) की मात्रा 12% होती है।
पित्त (Bile) का मुख्य कार्य निम्न है :-
1.यह भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता है, जिससे अग्न्याशयी रस क्रिया कर सके।
2.यह भोजन में आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
3.यह वसाओं का इमल्सीकरण (Emulsificationoffat)करता है।
4.यह आँत की क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है, जिससे भोजन में पाचक रस भली-भाँति मिल जाते हैं।
5.यह विटामिन K एवं वसाओं में घुले अन्य विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है।
6.पित्तवाहिनी में अवरोध हो जाने पर यकृत कोशिकाएँ रुधिर से विलिरुबिन लेना बन्द कर देती है। फलस्वरूप विलिरुबिन सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है। इसे ही पीलिया कहते हैं।
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